पटना (बिहार)।
आज के व्यस्ततम समय एवं लिखी जा रही बोझिल कविताओं की दौड़ में यदि किसी की लयात्मक कविताएँ आपके हृदय को छू ले, तो यह उस समकालीन कवि की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। ऐसे में लयात्मक कविताओं के धनी वरिष्ठ कवि डॉ. शरद नारायण खरे कवियों की श्रेणी में अग्रणी नजर आते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि डॉ. खरे अपने गीत-ग़ज़ल के माध्यम से आम पाठकों के हृदय में रचने-बसने का सामर्थ्य रखते हैं।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वावधान में आभासी साहित्य पाठशाला के २८वें अंक के अवसर पर कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए उपरोक्त उद्गार
परिषद के अध्यक्ष सिद्धेश्वर
श्वर जी ने व्यक्त किए। इस पाठशाला में छंद में लिखी कविताओं पर विशेष चर्चा की गई। मुख्य अतिथि डॉ. शरद नारायण खरे से एक छोटी भेंट वार्ता भी ली गई। उनसे सिद्धेश्वर जी ने ऐसे सवाल
पूछे कि, नए कवियों को छंद कविताएं लिखने में मदद मिल सके।
सुप्रसिद्ध रचनाकार सिद्धेश्वर जी से इस कार्यक्रम में बात करते हुए मंडला (मप्र) के कवि-लेखक प्रो. खरे ने बताया कि, वर्तमान में साहित्य तो बहुतेरा लिखा जा रहा है, पर अधिकांश निरर्थक व साहित्य के मापदंडों के बाहर का है। चाहे छंदबद्ध या मुक्तछंद में रचा जाए, पर वह गुणपूर्ण होना चाहिए। वैसे भी कवि-लेखक सदा विद्यार्थी होता है, उसे निरंतर सीखना चाहिए, तभी उसकी रचनाओं में स्तर का समावेश हो सकेगा। प्रो. खरे ने न केवल दोहों, गीतों, छंदों के विधानों पर चर्चा की, बल्कि मात्रा गणना व लय को पकड़कर दोषमुक्त रचना लिखना भी बताया। प्रो. खरे ने अन्य रचनाकारों की कविताओं का मनोयोग से न केवल श्रवण किया, बल्कि उन पर सार्थक टिप्पणियाँ भी कीं।
इस सम्मेलन के दूसरे सत्र में आयोजित कवि सम्मेलन में करीब १२ कवियों ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया । इनमें प्रमुख एकलव्य केसरी, डॉ. पूनम श्रेयसी, डॉ. सुधा पांडे, योगराज प्रभाकर, और विजया कुमार विजय आदि ने उपस्थिति दर्ज की।