हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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न जाने क्यों नफरत-सी हो रही है मुझको,
इस बदले हुए से बेडौल-बेढंगे हालात से
शर्मिंदगी-सी महसूस हो रही है अब सच में,
हर एक इन्सान से होने वाली मुलाकात से।
कभी घंटों बतियाने की एक कसक थी मुझमें,
अब घिन-सी होने लगी है एक छोटी सी बात से
कभी भीड़ में खो जाने को यह दिल तरसता था,
अब तो खीज-सी हो रही है छोटी-सी जमात से।
वे कहते हैं मुझे कि न जाने क्यों तुम,
कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे हो!
पर मैं कहता हूँ उनसे कि यह सब गलत,
मेरे हिसाब से तुम ही विपरीत जा रहे हो।
अभी चंद दिनों से आया है बदलाव माहौल में,
फिर क्यों लगता है कि मानो जमाना हो गया ?
पड़ोस का लंगोटी यार भी अब बैरी हो गया है,
जमाने का सच तो अब हमें ही बताना हो गया।
आखिर कब तक छुपाओगे हकीकत को ?
कभी न कभी तो हर राज ही खुल जाएगा
वे पाले बैठे हैं शायद कुछ गलतफहमियाँ कि,
गंगा स्नान से उनका हर पाप ही धुल जाएगा।
गटर में गिरे की गाद भले ही पानी से धुल जाए,
पर बदन में रची बदबू तो फिर भी बनी रहेगी।
काया का मैल तो भले ही साबुन से धो लोगे,
पर अन्तर रूह तो फिर भी पाप में सनी रहेगी।