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माँ से कहो कि आश्रम…!

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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मुकुंद आज आने में काफी देर हो गई।
हाँ! बस थोड़ा-सा काम आ गया तो यही सोचा पूरा होने पर निकलूं।
नीरू किचन की ओर बढ़ते हुए,-“मुकुंद जल्दी फ्रेश हो जाओ,मैं खाना लगाती हूँ।”
तुम खाना लगाओ नीरू,बस मैं यूँ गया और यूँ आया।
खाना परोसते हुए नीरू कुछ कहना चाह रही थी,मगर हिम्मत न जुटा पाई। खाने की मेज पर खाना खाते हुए मुकुंद कहता है,-“नीरू आज तुम्हारा ऑफिस का दिन कैसा रहा ?”
अच्छा था। आज लंच में निहारिका मिली थी। तुम्हारे बारे में पूछ रही थी। आजकल लंदन में है। किसी ऑफिस मीटिंग के सिलसिले में आई है। दो दिन बाद रिटर्न जा रही है।
अच्छा! संडे लंच पर बुला लेती उसे‌। काफी समय से गेट-टू-गेदर नहीं हुआ है। इसी बहाने मिलना हो जाता। रोहन भी आया है क्या ?
हाँ,रोहन भी आया है I काफी बिजी हैं वो। मुश्किल है आना। देखती हूँ। एक बार बात करती हूँ कल। दोनों को एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट मिला है I
अच्छा! कैसा प्रोजेक्ट ?
विभिन्न संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले अभियान ‘भारत में कुपोषित बाल एवं उनके निदान हेतु उठाए जाने वाले कदम’ का
विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार करनी हैI टेबल से सामान समेटते हुए नीरू हिम्मत कर मुकुंद से कहती है,-“मुकुंद क्या तुमने माँ से बात
की ?”
नीरू समय ही नहीं मिला। तुम खुद ही बताओ,मैं माँ से कैसे बात करूं ? कैसे आश्रम की बात…।
मुकुंद इसमें गलत भी क्या है ? मुझे लगता है तुम्हें बिना संकोच के माँ से बात करनी चाहिए। मैं उनके भले की ही बात कर रही हूँ।
नीरू मुझे लगता है वो जैसे जीना चाहती है उन्हें जीने दो। इस उम्र में अब ये…।
मुकुंद तुम समझना क्यों नहीं चाहते।
नीरू माँ ने जीवन में बहुत कुछ झेला है,अब इस तरह का वाकया वह सुन न सकेगी।
मैं तुम्हारी माँ की कोई दुश्मन नहीं हूँ। मैं उनके भले की ही बात कर रही हूँ।
नीरू मैं काफी थक गया हूँ। इस विषय में कल बात करेंगे।
अगली सुबह,-“गुड मॉर्निंग मम्मी जी। कैसी हो ?”
“गुड मॉर्निंग नीरू। मैं अच्छी हूँ I कल रात बहुत दिनों बाद बहुत अच्छी नींद आईI नीरू आज ऑफिस नहीं है क्या ?”
मम्मी जी ऑफिस तो है,मगर मैंने आज छुट्टी ली है। आज मैं पूरा दिन आपके साथ बिताना चाहती हूँ।
ये तो बहुत अच्छी बात है। तुम बैठो नीरू। मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूँ।
नहीं मम्मी जी,आज हम दोनों एकसाथ नाश्ता करेंगे। फिर शॉपिंग के लिए जाएँगे।
नीता बहू का प्यार और अपनापन देख अपने भाग्य एवं पूर्व कर्मों के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रही थी। नीरू को ससुराल आए अभी एक साल भी नहीं हुआ है,लेकिन घर में पूरी तरह रच-बस गई है।
नीता और नीरू दोनों तैयार हुए और निकल पड़े शॉपिंग के लिए। घर लौटने से पहले नीरू ने ड्राईवर को गाड़ी आश्रम की ओर लेने के लिए कहा। आश्रम का नाम सुनते ही नीता के हाथ-पैर फूलने लगे। मन में भय जागृत होने लगा। कहीं नीरू ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसा मुझे आश्रम में….,मगर नीता धैर्य का बांध बांधे बैठी रही।
ड्राईवर ने गाड़ी रोकी। नीरू और नीता गाड़ी से उतरे। सामने बड़ा-सा आश्रम था‌। नीता का मन अभी भी उथल-पुथल कर रहा था।
माँ,इस आश्रम से मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी है। जब मैं छोटी थी तब अक्सर दादी यहाँ लाया करती थी। आश्रम के बच्चों और महिलाओं से बात करना,उनके लिए कुछ करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। हमारे यहाँ आने से इन्हें एक नई जिंदगी,उम्मीद,विश्वास,
अपनेपन का अहसास,कल्पना की नव उड़ान मिलती है। जब कभी मन बेचैन और उदास होता है,तो मैं यहीं चली आती हूँ। मन को
बड़ा सुकून मिलता है। माँ देखो इन छोटे-छोटे बच्चों को कैसे उम्मीद की नजरें गड़ाए बैठे हैं ?
मैं और मुकुंद दोनों ऑफिस के कामों में इतना व्यस्त रहते हैं कि आपको समय ही नहीं दे पाते। और रही बात घर के काम-काज की तो उनके लिए नौकर काफी हैं। आपके आशीर्वाद और भगवान की दुआ से मैं और मुकुंद दोनों इतना कमाते हैं कि आपको कभी भी किसी भी चीज़ की कमी न होने देंगेI आपको पलकों पर बैठा कर रखना चाहते हैं हमI
मुझे बहुत बुरा लगता है कि आपके अकेलेपन को दूर करने में हम दोनों असमर्थ हैं। आप अक्सर टी.वी. देख कर समय बिताने की
कोशिश करती हैं। जब टी.वी. से मन ऊब जाता है तो सोसायटी की हमउम्र औरतों के साथ जी बहलाने का प्रयास करती हो। माँ अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ।
“कहो न नीरू।” नीता कहती हैI ‌
सोसायटी की सभी वृद्ध महिलाएँ इधर-उधर की बातें करती हैं या फिर सास-बहू वाले किस्सों के चटकारे मारती है। अच्छी-खासी बहू बदनाम हो जाती है। आखिर उनकी बहुएँ भी किसी की बेटी हैंI आप मुझे अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती हैं,तो क्यों किसी की निंदा सुनने के पात्र बनेंI ईश्वर ने हमें जो जीवन दिया है,उसका सदुपयोग करेंI
माँ,अगर आप अपना खाली समय यहाँ आ कर बिताएँगी तो इन्हें कोई अपना मिल जाएगा और आपका समय भी बीत जाएगा।
आपके यहाँ आने से किसी को माँ का स्नेह,तो किसी को दादी का दुलार तो…। जब आपको आना होगा ड्राईवर आपको छोड़ जाया करेगा। आपके मन को शांति-सुकून मिलेगा। माँ मेरी बातों का बुरा न
मानना। मैंने मुकुंद से इस विषय में आपसे बात करने के लिए कहा था,मगर वह संकोचवश कुछ कह न सका।
नीरू कल रात मैंने तुम्हें मुकुंद से बात करते हुए सुना था। तुम्हारी आधी-अधूरी बात से मैं कांप गई थी कि मेरे बेटे-बहू मुझे आश्रम भेजना चाहते हैं,मगर आज तुम्हारी बात सुन सीना गर्व से चौड़ा हो गया। मुझे बहू के रूप में साक्षात बेटी मिली है,जो मेरी खुद
से भी ज्यादा चिंता और प्रेम करती हैI जो बात मुझसे मेरा बेटा न कह सका,वही तुमने कितने सहज और सरल शब्दों में बयाँ कर
दी।
थैंक्स नीरू। वैसे भी घर में पड़े-पड़े मैं ऊब जाती हूँ I मैंने कभी नहीं सोचा था कि उम्र के इस पड़ाव को इतने सुकून के साथ जिया जा सकता है I अपने दुखों को भूल हम किसी कि ख़ुशी का हिस्सा बन सकते हैं,यह विचार कभी हृदय में आया ही नहीं I
हमारी एक मुस्कान किसी के जीवन में रंग भर सकती है इस बात का आभास आज हुआI नीरू तुमने जीवन के इस पड़ाव पर मुझे जीने की नई राह दिखाई। (दोनों आपस में गले मिलती हैंI)

परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl

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