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आ रहा है राम राज्य

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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आ रहा है राम राज्य इस दीवाली के संग,
चारों ओर खुशियाँ मचेंगी, नहीं रहेंगे तंग।

हर तरफ भाईचारा होगा, नहीं किसी से जंग,
मानव हो या जानवर, चाहे हो कीट-पतंग।

बरसों की तपस्या पूरी होगी,
इस बार दिवाली से,
पाँव पखारने को बैठी हैं, माँ सरयू अपनी पावन धारा से।

रामचन्द्र जी आएंगे फिर से,
राम राज्य की स्थापना होगी,
देखेगा अबकी बार सारा विश्व, ऐसी अनोखी दीवाली होगी।

लाखों-करोड़ों दीप जलेंगे,
पावन अयोध्या नगरी में।
खुशियाँ बांटी जाएंगी,
सोने-चाँदी की गगरी में।

जाति-धरम का भेद न होगा,
ऊँच-नीच का खेल न होगा,
सबकी बातें सुनी जाएगी,
सबके साथ में न्याय होगा।

जगमग होगा अयोध्या धाम,
चहुँओर गूंजेगा जय श्रीराम।
रामलला विराजेगें भव्य मंदिर में, भक्ति-भावना होगी सबके अंदर में।

‘दीनेश’ आज खुशी मनाए,
महिमा गाए रामराज्य की,
बरसों याद रहेगी सबको, दीपावली अयोध्या धाम की।

आ रहा है राम राज्य, इस दिवाली के संग।
नाचो-गाओ, खुशी मनाओ,
होके सबके सब मलंग॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।