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इंसानी रिश्तों को निभाने वाले सच्चे साहित्यकार थे डॉ. पुष्करणा

पुण्यतिथि…

पटना (बिहार)।

डॉ. सतीश राज पुष्करणा युवावस्था में जीविका के सिलसिले में बिहार आए और सारा जीवन पूरे समर्पण के साथ साहित्य को, विशेष कर लघुकथा को दे दिया। देखते ही देखते इसी बिहार की जमीन पर उन्होंने अपना ऐसा परिवार बनाया कि उनके जाने के बाद भी स्मृतियाँ हम सबमें इस तरह रौशन हैं कि जिन से हमेशा दिल की अंधेरी बस्तियाँ प्रज्ज्वलित होती रहेंगी। वे इंसानी रिश्तों को शिद्दत से निभाने वाले सच्चे साहित्यकार थे।
लघुकथा आंदोलन के पुरोधा एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के संस्थापक डॉ. सतीश राज पुष्करणा की द्वितीय पुण्यतिथि पर आयोजित ‘स्मृति पर्व सह लघुकथा पाठ’ की अध्यक्षता करते हुए लंबे अर्से तक उनकी साहित्यिक यात्रा के हमसफर रहे लेखक और शायर डॉ कासिम खुर्शीद ने कही। इस अवसर पर राजधानी के लघुकथाकारों ने भी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि निवेदित की। मंच के तत्वावधान में खादी मॉल सभागार में इस आयोजन में मुख्य अतिथि सम्पादक और कवि प्रो. शिवनारायण ने कहा कि, स्मृतिशेष सतीशराज पुष्करणा न केवल हिन्दी लघुकथा को विधागत मान्यता दिलाने के राष्ट्रव्यापी लघुकथा आंदोलन के प्रणेता रहे, बल्कि आधुनिक लघुकथा के प्रतिष्ठापक भी रहे। लघुकथा में उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों की रचना कर एक कीर्तिमान स्थापित किया।
विशिष्ट अतिथि साहित्यकार डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि, डॉ. पुष्करणा लघुकथा के पर्याय थे। मंच की उपाध्यक्ष प्रो. अनीता राकेश ने कहा कि उन्हें लघुकथा के पर्याय के रूप में पूरे देश में सम्मानपूर्वक याद किया जाता है।
दिलीप कुमार, डॉ. ध्रुव कुमार, चितरंजन भारती, वीरेंद्र भारद्वाज और साहित्यकार सिद्धेश्वर ने लघुकथा और लेखकों को आगे बढ़ाने में डॉ. पुष्करणा के विस्तृत योगदान की चर्चा की। इस अवसर पर प्रभात कुमार धवन, डॉ. विद्या चौधरी, रेखा भारती मिश्रा, रूबी भूषण, अनिल रश्मि और पंकज प्रियम सहित ३० रचनाकारों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। संचालन मंच के महासचिव डॉ. ध्रुव कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अनिल रश्मि ने किया।

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