रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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बरसात का पानी बन,
पर न बन बाढ़ का कहर
आग से जो न जले कभी,
मोम नहीं, बन ऐसा प्रस्तर।
आँधियों के थपेड़ों से,
तू मानव कभी न डर
यह मौसमी बहार है,
रहती नहीं यहाँ हर पल।
सूखी आँखों की रोशनी बन,
प्यासों का बन तू पानी
तभी सार्थक होगा जन्म,
तभी सार्थक है जवानी।
देश की रक्षा हेतु ही,
दे गर जीवन कुर्बानी
जीवन से बेहतर होगी,
मौत की वह रवानी।
किसी का साथ क्यों ढूंढे,
मतलब के सब यार यहाँ
खुद के बल पर छू ले नभ,
तू नहीं कमजोर यहाँ।
इसी का नाम जीवन है,
इसी का नाम जवानी।
काँटे चुन राहों से तू,
यही जीवन की कहानी॥