मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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ईश्वर और मेरी आस्था स्पर्धा विशेष…..
दृढ़ आस्था ही उपजाता…
हममें अटल विश्वास…,
हो प्रतिमा जैसी भी उसमें…
लगता ईश्वर का वास…।
होने लगती है धीरे-धीरे…
कोई दिव्य अनुभूति…,
हर्ष रहे या व्यथा पुरानी…
वो अक्षरशः होती श्रुति…।
पूर्ण समर्पित फ़िर हो जाता…
ईश समक्ष मन मेरा…,
अलौकिक शक्ति की ऊर्जा का…
जैसे आसपास हो घेरा…।
उस परम सत्ता का जब-जब…
होने लगता है भान…,
उस क्षण माँ तुलसी में भी…
हैं नज़र आते भगवान्…।
प्रातः दीप जलाऊँ या…
मैं मांगू संध्या वरदान…।
दिव्य आत्मिक संबंध ही…
पत्थर में फूंके प्राण…॥
परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”