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उजालों का स्वागत करें

ललित गर्ग
दिल्ली

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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस १० अक्टूम्बर विशेष….

देश एवं दुनिया में मानसिक बीमारियां बढ़ रही है, तनाव एवं असंतुलन के कारण अनेक विकृतियां एवं मनोरोग पनप रहे हैं,मानसिक अस्वास्थ्य वर्तमान युग की ज्वलंत समस्या है,उस पर नियंत्रण पाने के लिए विविध प्रयोग हो रहे हैं। इन्हीं प्रयोगों में एक सकारात्मक उपक्रम है,विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस। लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील और जागरूक करने के उद्देश्य से १० अक्टूबर को यह दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है-चिंता,चिता के समान है। प्रतिदिन के तनाव से उपजती और मौत के मुँह में ले जाती गंभीर बीमारियों को देखते हुए यह बात बिल्कुल सही साबित होती है। हर एक मिनट का हिसाब रखती,भागदौड़ भरी वर्तमान जीवनशैली में सबसे बड़ी और लगातार उभरती हुई समस्या है मानसिक अस्वास्थ्य। हर किसी के जीवन में स्थाई रूप से अपने पैर पसार चुके मनोरोग,तनाव,कुंठा,ईर्ष्या व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। आपकी निजी जिंदगी से शुरू होने वाला मानसिक तनाव एवं मानसिक विकृतियां पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या बनकर उभरी है,जो अपने साथ कई तरह की अन्य समस्याओं को जन्म देने के कारण होते हैं। इन्हीं मानसिक विकृतियों एवं बीमारियों से ही उजपा है आतंकवाद,युद्ध,हिंसा,भ्रष्टाचार,व्यभिचार, एवं यौन विकृतियां। यही कारण है कि,इनसे बचने के लिए और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए योग, ध्यान,अध्यात्म और कई तरह के अलग-अलग तरीकों को लोग अपने जीवन में उतार रहे हैं।
यह सच है कि प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा के इस युग में मनोरोग अधिक पनप रहे हैं। बीमार मानसिकता के कारण ही हम लगातार संघर्षों एवं परेशानियों से घिरे रहते हैं। हमारा मानसिक स्वास्थ्य,शारीरिक स्वास्थ्य के साथ काफी जुड़ा हुआ है। किसी एक के प्रभावित होने से दूसरे पर जरूर असर पड़ता है। हम यह भी जानते हैं हमारे मस्तिष्क के रसायन,हमारे मन और विचारों को प्रभावित करते हैं। मानसिक तनाव की स्थिति में हम प्रायः किसी तरह के व्यायाम,योग-ध्यान को करना पसंद नहीं करते,जबकि मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि हम पौष्टिक आहार खाएं, व्यायाम करें,ध्यान एवं साधना के प्रयोग करें और भरपूर नींद लें।
मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य का रिश्तों के साथ गहरा संबंध है। भारतीय संस्कृति में परिवार व पारिवारिक मूल्यों की अपनी अहमियत है। यही वह व्यवस्था है जो भारतीय समाज को विश्व में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय बनाती है। यह भारत और भारतीयता की विशिष्ट पहचान है,लेकिन समय के साथ यह संस्था भी प्रभावित होती गई है और मौजूदा समय में संक्रमण के दौर से गुजर रही है। इसकी एक बड़ी वजह है कि मनुष्य का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है।
यह मस्तिष्क ही है जो हमें शक्ति देता है जिससे हम हार को जीत में बदल देते हैं। बुराई से अच्छाई, असत्य से सत्य,अंधकार से प्रकाश और हिंसा से अहिंसा की ओर ले जाने में मस्तिष्क ही कारगर भूमिका निभाता है।
व्यक्ति के जीवन का ध्येय होना चाहिए कि उसका मस्तिष्क संतुलित एवं स्वस्थ बने,उसे हार,डर और बुराई की प्रवृत्ति से हटाकर उपलब्धि,जीत और अच्छाई की दिशा में ले जाए। कहा भी गया है खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह खालीपन बहुत बार मानसिक ही नहीं,बल्कि शारीरिक बीमारियों का कारण भी बनता है। मस्तिष्क की अस्वस्थता से शरीर ही नहीं,आत्मा भी बीमार हो जाती है। अध्यात्म महर्षियों ने स्वस्थ मस्तिष्क को स्वस्थ मानव का मूलभूत आधार माना है। विज्ञान भी इससे असहमत नहीं है।
यह बात हर किसी को हर दिन याद रखनी चाहिए, कि तनाव किसी भी समस्या का हल नहीं होता बल्कि कई अन्य समस्याओं का जन्मदाता होता है। इसी तनाव के कारण अनेक मनोरोग उत्पन्न होते हैं। दुनिया में सबसे अधिक हृदय घात का प्रमुख कारण मानसिक तनाव एवं मानसिक अस्वास्थ्य होता है। यह आपका स्वभाव चिड़चिड़ा कर आपकी खुशी और मुस्कान को भी चुरा लेता है। इससे बचने के लिए तनाव पैदा करने वाले अनावश्यक कारणों को जीवन से दूर करना जरूरी ही नहीं,अनिवार्य हो गया है।
मस्तिष्क को संतुलित एवं स्वस्थ बनाने का कार्य जटिल अवश्य है लेकिन असंभव नहीं। गीता में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि चित्त बहुत चंचल, उद्वेगकारक और दुराग्रही है। इसे वश में करना वायु को वश में लाने के समान है। भगवान श्रीकृष्ण ने तब एक सरल उपाय बताया कि निरंतर अभ्यास और अनासक्ति से चित्त को वश में किया जा सकता है।
दिखाई यह दे रहा है कि समस्याएं असंख्य है किंतु उनका समाधान एक प्रशिक्षित मस्तिष्क ही कर सकता है। यह प्रशिक्षण बाहरी नहीं बल्कि अपने ही दिल और दिमाग को निर्मल करने का सम्यक् उपक्रम बने,तभी संभव है। मन की तृष्णा और अत्यधिक प्राप्त कर लेने की आकांक्षा संतोष और आंतरिक संतुलन जैसे चिंतन से ही शांत हो सकेगी।

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