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बेटियाँ

प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
पंडरिया (छत्तीसगढ़)
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बेटी से परिवार,नाम कुल रौशन करती।
देना बेटी मान,जगत की पीड़ा हरती॥
माँ-पापा की जान,सदा वो प्यार लुटाती।
घर-आँगन को रोज,फूल-सी वह महकाती॥

लेती घर में जन्म,गूँजती है किलकारी।
नन्हीं होती जान,सभी को लगती प्यारी॥
लेते पापा गोद,नयन उनके भर आते।
हँस-हँस कर वे रोज,प्यार अपना बिखराते॥

करो नहीं तुम भेद,एक तुम इसको जानो।
होती दुर्गा रूप,सदा तुम इसको मानो॥
बेटी से संसार,उजला घर को करती।
बन लक्ष्मी का रूप,सदा अपना घर भरती॥

नहीं समझना बोझ,जगत में इसको लाओ।
बेटी-बेटा एक,खुशी घर में बिखराओ॥
पढ़-लिख कर वो आज,हमेशा आगे बढ़ती।
करती है हर काम,राह वो अपनी गढ़ती॥

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