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उनकी कमी खली जाए

राजेश पड़िहार
प्रतापगढ़(राजस्थान)
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साँस जितनी बची चली जाए।
जिंदगी फिर नहीं छली जाए।

स्वार्थ वाली पकी तवा रोटी,
साग अब फिर कहीं जली जाए।

मुस्कुराते रहे हज़ारों में,
आज उनकी कमी खली जाए।

गम हटा कर कभी चला करना,
राह फिर मौज से ढली जाए।

हार दर पर तेरे चढ़ाया जो,
नोंचती तो नहीं कली जाए।

आज ‘राजेश’ है सभी स्याने,
दाल अब तो कहां गली जाए॥

परिचय-राजेश कुमार पड़िहार की जन्म तारीख १२ मार्च १९८४ और जन्म स्थान-कुलथाना है। इनका बसेरा कुलथाना(जिला प्रतापगढ़), राजस्थान में है। कुलथाना वासी श्री पड़िहार ने स्नातक (कला वर्ग) की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय (केश कर्तनालय)है। लेखन विधा-छंद और ग़ज़ल है। एक काव्य संग्रह में रचना प्रकाशित हुई है। उपलब्धि के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान में उल्लेखनीय योगदान हेतु जिला स्तर पर जिलाधीश द्वारा तीन बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। आपको शब्द साधना काव्य अलंकरण मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी के प्रति प्रेम है।

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