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दीपक ज्यों जल कर कहे….

अवधेश कुमार ‘आशुतोष’
खगड़िया (बिहार)
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आजादी के हो गए,आज बहत्तर साल।
लेकिन अपना देश है,अभी तलक बदहाल॥
अभी तलक बदहाल,करोड़ों भूखे नंगे।
नेता अपने धन्य,कराते रहते दंगे॥
सुरसा मुँह की भाँति,आज बढ़ती आबादी।
कुछ को बच्चे तीस,कौन-सी यह आजादी॥

भैया को माने बहन,कान्हा का अवतार।
चीर हरण पर है यकीं,लेगा भ्रात उबार॥
लेगा भ्रात उबार, उबारे हरि ज्यों कृष्णा।
नहीं बुझेगी दुष्ट,दुशासन दृग की तृष्णा॥
पड़े मुसीबत,भ्रात,बनेंगे कृष्ण-कन्हैया।
सदा बहन की चाह,ईश रक्खें खुश भैया॥

सबको लेकर साथ में,करना मुझे विकास।
कपड़ा घर भोजन मिले,सबको काम पचास॥
सबको काम पचास,सभी को रोजी रोटी।
हो पथ सुगम सपाट,सभी चढ़ जाए चोटी॥
समदर्शी हो दृष्टि,याद मैं करता रब को।
दूंगा एक समान,सदा मैं अवसर सबको॥

दीपक ज्यों जलकर करे,चारों ओर प्रकाश।
त्यों ही मानव भी करे,अंधकार का नाश॥
अंधकार का नाश,ज्ञान का दीप जलाकर।
ले पहले वह ज्ञान,स्वयं को खूब तपाकर॥
जैसे होता आम,मधुर जब जाता है पक।
वैसे जीवन धन्य,जले जब वह बन दीपक॥

आया था ले कारवां,पैंसठ,सौ सौ तीन।
कुछ के मुख पर लालिमा,कुछ का मुख गमगीन॥
कुछ का मुख गमगीन,मचा दी घोर तबाही।
जिसके मुख पर हर्ष,उन्होंने खुशियां चाही॥
बांटा सुख-दु:ख हर्ष,समेटी इसने माया।
जो जाता उस पार,भला वह कब फिर आया॥

रचना के आनन्द को,कहिए ब्रह्मानन्द।
पाएं परम सहोदरी,रचने का सुख छन्द॥
रचने का सुख छन्द,कि ब्रह्मानन्द सहोदर।
मन करता यह स्वच्छ,देह ज्यों स्नान सरोवर॥
रचकर ही साहित्य,पूर्ण करते हैं सपना।
ऋषि मुनि का तप ध्यान,ब्रह्म की होती रचना॥

आप हमारे सूर्य बन,करते तम का नाश।
हम झिलमिल करते सदा,पाकर नित्य प्रकाश॥
पाकर नित्य प्रकाश,रहेंगे हम आभारी।
यह नेकी का काम,आप बस रक्खें जारी॥
फिर तो सबकी नाव,लगेगी आप किनारे।
मेरे नाविक आप,सूर्य भी आप हमारे॥

काया मानव की मिली,कर इसका उपयोग।
ध्यान मनन कर लो भजन,कर लो मन से योग॥
कर लो मन से योग,सुनो हे भू के वासी।
चूका यदि इस देह,घूमना लख चौरासी॥
समय रहा है दौड़,गहो तुम उसकी छाया।
क्या जाने कब साथ,छोड़ दे अपनी काया॥

परिचय-अवधेश कुमार का साहित्यिक उपनाम-आशुतोष है। जन्म तारीख २० अक्टूबर १९६५ और जन्म स्थान- खगरिया है। आप वर्तमान में खगड़िया (जमशेदपुर) में निवासरत हैं। हिंदी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले आशुतोष जी का राज्य-बिहार-झारखंड है। शिक्षा असैनिक अभियंत्रण में बी. टेक. एवं कार्यक्षेत्र-लेखन है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं। लेखन विधा-पद्य(कुंडलिया,दोहा,मुक्त कविता) है। इनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें-कस्तूरी कुंडल बसे(कुंडलिया) तथा मन मंदिर कान्हा बसे(दोहा)है। कई रचनाओं का प्रकाशन विविध पत्र- पत्रिकाओं में हुआ है। राजभाषा हिंदी की ओर से ‘कस्तूरी कुंडल बसे’ पुस्तक को अनुदान मिलना सम्मान है तो रेणु पुरस्कार और रजत पुरस्कार से भी सम्मानित हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी की साहित्यिक पुस्तकें हैं। विशेषज्ञता-छंद बद्ध रचना (विशेषकर कुंडलिया)में है।

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