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उपहार धरा नित प्रकृति स्वच्छ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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देख मनुज आचार कुटिलता, प्रकृति आज शोकाकुल मन है
उसका ही संहार करे वह, मानव जीवन पर्यावरण है।

जल अम्बर पावक अनिल धरा,
बना सकल श्रंगार प्रकृति है
बनी प्रदूषित मनुज स्वार्थ से, क्षत-विक्षत आधार रहित है।

नित कर्तन पर्वत तरु सरिता, प्रकृति हताहत कोख रुदित है
जलप्लावन तूफान भूस्खलन, भूकम्पन अकाल पीड़ित है।

औद्यौगिक लिप्सा मानव मन, अंधकार धुम गगन मलिन है
हवा प्रदूषि जीवन दुर्भर,
घुट रही नित श्वाँस मनुज है।

महारोग जग फैल रहे नित, बन जीवन यमराज मनुज है
छल कपटी बन स्वार्थ फँसा जग,
सत्ता सुख आगाज दनुज है।

अस्त्र-शस्त्र की होर लगा जग, विस्तारक परमाणु ज़हर है
विध्वंसक जीवाणु विनाशक, हालाहल बन सृष्टि कहर है।

सुष्मित कुसुमित प्रकृति चारुतम,
सुरभित जीवनलोक सुखद है
सूरज चंदा अहर्निशा नित,
हरे तिमिर जग शोक विरत है।

छह ऋतुओं में प्रकृति सजी भू,
विविध रूप श्रंगार सजी है
शीताकुल विहंग जन्तु मनुज, मधु वसन्त उपहार प्रकृति है।

मधुर माधवी कुसुमित उपवन, मुकुलित चारु रसाल मधुर है
नवरंग सजा फागुन निकुंज, सरसिज गाल गुलाल मुकुल है।

कू-कू करती कोकिल तरुवर, पंचम स्वर मधु गान मुदित है
नवप्रभात अरुणिम किरण धवल,
हर्षित जग इन्सान सहित है।

नवविकास चहुँओर प्रगति जग,
प्रकृति ग्रीष्म धर रूप तपित है
औद्यौगिक परिवहन सुलभ जन,
संचालन पा धूप मुदित है।

वसुंधरा ग्रीष्मातप व्याकुल, व्यथित लू अवसाद ग्रसित है
श्रावण भादो रूप घटा नभ, प्रकृति वृष्टि बन बरस मुदित है।

हरियाली हर्षित अखिल धरा, फसल खेत खलिहान भरित है
पुष्पित नव पादप तरु गिरि वन,
हरित-भरित उद्यान फलित है।

कूप सरोवर सरित भरे सब, झील सलिल नद पूर्ण भरा है
जल प्रपात निर्झर पर्वत जल, सागर में तब्दील धरा है।

षोडशी प्रकृति सज जल यौवन,
नदी मधुशाला नशा बनी है
लीन धरा हो अति जल प्लावन,
घर-धन-दौलत बाढ़ मिली है।

हेमन्त ऋतु मधुरागम भावन, हर आप्लावन वृष्टि रहित है
आश्विन कार्तिक मास शुभम, प्रकृति चारुतम सृष्टि मुदित है।

दुर्गाराधन पर्व सनातन, महाविजय त्यौहार प्रथित है
जले दीपावली खुशी दीप, प्रकृति मनुज उपहार मुदित है।

शरद्काल पुलकित किसान मन,
देख हर्ष मन पकी फ़सल है
बहते मन्द-मन्द शीतल पवन, प्रवहित समतल धरा मृदुल है।

अन्नपूर्ण उपकार प्रकृति जग, झूमे कृषक जहान सुखद है
लदे फलों से विविध वृक्ष वन, वन औषधि हिमवान बहुल है।

थिथुरन कम्पन शिथिल गात्र जग,
शिशिर ऋतु अवतार प्रकृति है
मुक्ता हार तुषार ओस कण, तरुदल वन शृङ्गार सजित है।

उपहार धरा नित प्रकृति स्वच्छ,
हो जीवन सुखधाम मनुज है।
तभी संरक्षण पर्यावरण,
वृक्ष लगा जो प्राण रूप है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥