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पर्यावरण सुधार ही में है मानव कल्याण

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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पर्यावरण दिवस विशेष….

यह तो हम सभी जानते हैं कि जल,वायु,पृथ्वी, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है,यानि इन पाँचों तत्वों का समावेश न केवल हमारे स्थूल शरीर में है,बल्कि प्रकृति भी इन सभी पाँचों तत्वों से ही बनी है। सीधा अर्थ है।कि,जंतु,पेड़-पौधे और हम मनुष्य सभी इन पंच-तत्वों के संयोग से ही पैदा हुए हैं। इसलिए इन पाँचों में असंतुलन होने से हमें विभिन्न समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है। इसलिए इन पाँचों में संतुलन बना रहे,यह हम सभी की जिम्मेदारी है,क्योंकि संतुलन रहने से ही पर्यावरण सब तरह से अनुकूल रहेगा।
सभी जानते हैं कि प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध आदि काल से परस्पर निर्भर रहा है। इसका मतलब है कि इन पंचतत्वों से हमारी सृष्टि और मानव का अस्तित्व है। इसी कारण से इन सभी के बीच संतुलन अति आवश्यक है,लेकिन आजकल भिन्न-भिन्न कारणों से इसकी मात्रा में असंतुलन भी होता है और वही चिन्ता का कारण है। जैसे ही इनमें संतुलन बिगड़ता है,तो पर्यावरण दूषित हो जाता है।
संतुलन बिगड़ने के अनेक कारण हम सभी को स्पष्ट दिखाई देते हैं,लेकिन हम अपने स्वार्थ के चलते उनकी अनदेखी करते हैं और उसका परिणाम भी भुगतते हैं।
कुछ बड़े कारणों पर चर्चा करें तो बहुत कुछ दृष्टिगोचर होगा-

वनों व वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई जिसके चलते जंगल खाली होने लगे और पशु-पक्षियों के लिए भी संकट पैदा कर दिया। वृक्षों का ही अभाव है कि आए दिन पर्वतों की चट्टानें खिसकने और गिरने की घटना एं सामने आती हैं। इसके साथ विभिन्न प्रकार की खनिज सम्पदा,पत्थर आदि का अन्धाधुन्ध दोहन भी असंतुलन का एक बड़ा कारण बन गया है। हाल ही में सभी ने हिमाचल प्रदेश में भूस्लखन की १० दिन के भीतर ही २ घटनाओं को अखबारों में पढ़ा ही होगा। कुछ साल पहले ही बद्रीनाथ जी व केदारनाथ जी की तरफ जो भयंकर त्रासदी हुई,वह सब इन्हीं असंतुलन का ही परिणाम था।

इसका निदान यह है कि हम सभी को पेड़-पौधों यानी जंगल-वनों को बचाना चाहिए,तभी जीव-जंतु बचेंगे,और इनके बचने से ही जिन्दगी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा।
हमारे शास्त्रों में पेड़-पौधों की समुचित देखभाल को भगवान की सच्ची सेवा माना गया है,क्योंकि पेड़ों पर सैकड़ों पक्षी आश्रय पाते हैं और खाद्य,जल एवं आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों की भी अहम भूमिका होती है। ये पेड़-पौधे ही जहाँ एक तरफ जीवनदायिनी प्राणवायु (आक्सीजन) देते हैं, दूसरी तरफ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रख कुछ दिन पहले कोरोना काल में जब हमारे देश में प्राणवायु की किल्लत देखने को मिली तब समझदार पर्यावरण प्रेमियों ने आम नागरिकों को जागरूक करने के लिए यह बात साँझा की-
“अगर वायुमंडल में ऑक्सीजन नहीं होगी तो दुनिया का कोई भी यंत्र आपको ऑक्सीजन बना कर नहीं दे पाएगा। अगर जिंदा रहना चाहते हैं तो हमें बरगद,पीपल,नीम,अर्जुन और अशोक के पेड़ लगाने पड़ेंगे,आज से और अभी से। इसलिए इस ओर सभी को अपना अपना योगदान देना अविलम्ब शुरू कर देना चाहिए।”
इसलिए जान लीजिए कि,पेड़-पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं,अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। पर्यावरण के सम्बन्ध में वनों और पेड़ों का बहुत महत्व है। हमारे यहाँ तो वृक्षों की अत्यधिक उपयोगिता को स्वीकार कर और मानवीय भावनाओं के वशीभूत होकर उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया है। हमें सिखाया गया है कि वास्तव में प्रकृति हमारी संरक्षक है,पोषक है इसलिए हमें प्रकृति की मूल सम्पदा को बचाए रखते हुए उसके ब्याज से काम चलाते रहना चाहिए। वनों के प्रति सजग न रहना और भावी पीढ़ियों की चिन्ता न करना उनके प्रति अनाचार होगा।
अब सभी सरकारें वृक्ष रोपण का समय-समय पर कार्यक्रम बना कर कर भी रही हैं,लेकिन अभी भी रोपण पश्चात जो देखभाल होनी चाहिए,वहाँ ढ़ील देखने में मिलती है। इसलिए जनता को स्वयं देखभाल का जिम्मा उठाना चाहिए,क्योंकि पृथ्वी के तत्वों के बीच संतुलन रखने के लिए यह एकमात्र उपाय है।

ऐसा माना जाता है कि जितना जल संसार में है उतने ही प्रतिशत जल इस शरीर में है,लेकिन दुनिया की बेतहाशा बढ़ती आबादी ने सम्पूर्ण विश्व में जल पर गहरा संकट उत्पन्न कर दिया है। इसलिए जल का संतुलन भी रहना बहुत आवश्यक है। जल के उपयोग एवं प्रदूषण में उद्योगों की एक बहुत बड़ी भूमिका है। उद्योग वाले तो सोचते ही नहीं हैं और सारा कचरा तालाबों या नदियों में धड़ल्ले से डाले देते हैं,जिसके चलते तालाब,नदियाँ प्रदूषित भी हो रही हैं और जनता के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। इस प्रकार हमें जल के साथ अपनी पृथ्वी को भी बचाना होगा।

इसका निदान है कि जल भण्डारण अति आवश्यक है। जल भण्डारण पर सभी सरकारें योजनाबद्ध तरीके से काम भी कर रही हैं और प्रोत्साहित भी।
पानी को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए,बल्कि उसका आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए। हमें पर्यावरण पर विशेष ध्यान देना होगा,इस धरा को हरा-भरा रखना होगा।
हमारे देश के जलसंकट को दूर करने के लिए दूरगामी समाधान के रूप में विभिन्न बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने से बहुत लाभ मिलेगा।
इस प्रकार संक्षेप में पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी केवल और केवल मनुष्य के जिम्मे है। सभी तथ्यों से यह स्पष्ट है कि हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,इसलिए ही इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘पारिस्थितिकी तंत्र बहाली’ है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य अवगत कराना चाहता हूँ वह यह कि कृतयुग में ही संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक चौपाई लिख पूरी मानव जाति के सामने पर्यावरण का एक सही खाका खींच दिया था और उसे आज के वैज्ञानिकों ने स्वीकारा ही नहीं,बल्कि मान्यता भी दी है-
‘क्षिति,जल,पावक,गगन,समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा॥’

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