डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
**************************************
राज और बबलू दोनों एकसाथ पढते थे। इस कारण दोनों की दोस्ती बहुत अच्छी थी। हर पल दोनों एकसाथ रहते। यह देख बबलू के पिता को अच्छा न लगता था, क्योंकि जहां वह गाँव के सम्पन्न परिवारों में से एक थे, वहीं राज गरीब परिवार का बेटा था। इसीलिए एक दिन बबलू के पिता उसे अपने पास बुला कर समझाने लगे,-“बेटा, हमारी समाज में अपनी एक अलग प्रतिष्ठा है और तुम्हारा राज जैसे निम्न लोगों के साथ रहना शोभा नहीं देता।” इतने में राज भी वहां पहुंच गया, कुछ हद तक उसने बातें भी सुनी, परंतु दोनों की मित्रता में कोई अंतर ना हुआ।
दुखों की चादर में पला राज हर चीज को बड़ी बारीकी से देखता और समझने के लिए हर संभव प्रयास करता। यही कारण है कि बहुत ही कम समय में उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई। पूरे गाँव में उसका बोलबाला हो गया।
तभी एक दिन भोलाराम (बबलू का पिता) दफ्तर में अपनी पेंशन के कागज पर हस्ताक्षर करवाने पहुंचा। वहां राज को देख दो पल तो हक्के-बक्के रह गए। वही राज भोलाराम को वहां देख बहुत खुश हुआ।
“…अरे चाचा जी, आप यहाँ! कैसे हैं! सब- कुछ कुशल-मंगल ?
“…हाँ सब कुछ ठीक है बेटा।”
“बबलू कैसा है ?”
“..ठीक है, मेरे टुकड़ों पर ही पल रहा है।”
“…अरे चाचा जी, सब ठीक हो जाएगा।
इतनी चिंता न करें।”
“…कहिए,कुछ काम था ?”
“हाँ, मेरी पेंशन के कागज पर हस्ताक्षर चाहिए थे।”
“…अच्छा। आप यहीं बैठकर चाय पीजिए। मैं चाय मंगवा देता हूँ। तब तक मैं आपका काम निपटा देता हूँ।”
वहां की व्यवस्था और राज के व्यवहार को देख उसे अपनी सोच पर धिक्कार महसूस हो रहा था। वह अपनी नजरों में बड़ा तुच्छ महसूस कर रहा थे। बीते कल की हुई उपेक्षा मानो उसके कानों में गूंज रही थी।
फिर भी खुद को संभालते हुए उन्होंने पीठ थपथपाते हुए कहा,-“शाबाश बेटा, सचमुच तुम जैसा बेटा हर किसी का हो! भगवान तुम्हें लंबी उम्र दे।” इतना कह वह वहां से चले गए…।