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एकाधिकार से ही हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना और जनसंख्या नियंत्रण संभव

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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नयी शिक्षा नीति ने यह स्पष्ट कह दिया है कि हम हिंदी नहीं थोपेंगे किसी भी प्रान्त या भाषा पर। यह बहुत सही निर्णय है,जिस प्रकार हमारे यहाँ जनसंख्या नियंत्रण करना असंभव है। जी हाँ,भारत एक लोक कल्याणकारी राष्ट्र है,जो लोगों के लिए,लोगों के द्वारा,लोगों को चुनकर भेजता है और चुने हुए प्रतिनिधि विभिन्न दल या विचारधारा के होते हैं और सबके अपने-अपने स्वार्थ -हित होते हैं। हम स्वतंत्र होने के बाद स्वछन्द हो गए हैं। किlसी भी पार्टी का किसी पर कोई नियंत्रण नहीं,पता नहीं देश कौन चला रहा है। भगवान जो निराकार और साकार दोनों है,वह कैसे इतने बड़े देश को नियंत्रित करता होगा।
हमारे देश में कई भाषा,जाति,परम्परा हैं,पर भारतीय संस्कृति एक है,नियम एक हैं। इस देश का सौभाग्य रहा कि कई कार्यकाल आये और चले गए पर कई विरासतें छोड़ गए,जो नासूर बनकर अब कैंसर हो गए पर हम जिन्दा हैं। हम अब इतने अधिक जागरूक हैं कि विवाद करना हमारी आदत बन गयी है। स्वयं से संघर्ष,परिवार से संघर्ष से ओत- प्रोत होकर समाज और व्यवस्थाओं से लड़ने की आदत बन गयी है।
देश के विकास के लिए बहुत कारक हो सकते हैं,पर मूल में जब तक शिक्षा और जनसंख्या जैसे मुद्दों पर अपना चिंतन स्पष्ट नहीं करेंगे,तब तक कल्पना करना कोरी हवा में दौड़ना होगा। जी हाँ,कारण ये मुद्दे जब संकीर्ण मानसिकता के साथ राजनीति से जुड़ जाते हैं,तब समस्या सामान्य से असामान्य बन जाती है। इसका मूल कारण देश में प्रजातंत्र का होना है। हाँ,यह कड़वी सच्चाई है। क्या हम इन विषयों पर जापान,चीन से कुछ सीख सकते हैं। चीन ने एक समय कानून बनाया कि एक से अधिक बच्चे होने पर उनके अभिभावक और संतान को कोई भी शासकीय सुविधा नहीं मिलेंगी। जापान ने स्वन्त्रता के तुरंत बाद वहां उन्होंने अपनी भाषा को राष्ट्रीय भाषा की घोषणा कर दी थी।
हमारे देश में कहीं का ईंट और कहीं का रोड़ा और भानवती का कुनबा जोड़ा वाली स्थिति है। कभी कोई किसी भी बात पर एक नहीं होते,हमारे देश के विधायक, सांसद,मंत्री मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री आदि बस एक बात पर सब एक हो जाते हैं,वह है उनका वेतन,भत्ता और सुविधाएँ। चुनाव में जीतने के बाद ये देश के दामाद और धरोहर मान लिए जाते हैं। आप कोई भी संविधानिक चर्चा नहीं कर सकते,कारण कि उनकी शिक्षा,दीक्षा,संस्कार विहीनता है। उनको तो बस सुविधाएं चाहिए और दलाली से अपने चुनाव में खर्च किये धन की वसूली करना है। उनके पास देश हित की कोई बात नहीं हैं,स्व-हित पहले है।
इस समय जो स्थिति निर्मित हुई है उसमे हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना मुश्किल है और उसी प्रकार देश में जनसंख्या नियंत्रण पर बात करना भी लाज़िमी नहीं है। कारण यह मुद्दा जातिगत पर रुक जाता है,जबकि यह मुद्दा देश के विकास के लिए बहुत जरुरी है,पर न जाने कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग इसमें भी लाभ देखते हैं,जबकि हम जानते हैं कि जनसंख्या को रोक नहीं सकते,पर सीमित परिवार बनाया जा सकता है। आज स्थिति यह है कि सामान्य वर्ग का नागरिक तीन वर्गों का लालन-पालन कर रहा है। सरकार कराधान लगाकर सामान्य वर्ग का खून चूसकर अन्य वर्गों को उपकृत कर,वाह-वाही लूट रही है। इस विषय पर जाति-समाज से ऊपर उठाकर मनन होना चाहिए,पर इसमें में भी राजनीति है।
इन मसलों का निराकरण दो तरीके से हो सकता है-पहला सर्वसम्मति से निर्णय होना चाहिए। यह सबसे सरल सुगम मार्ग है,अन्यथा वर्तमान सरकार जिसे प्रचंड बहुमत मिला है,वह अपने अधिकारों का उपयोग करे। राम मंदिर प्रकरण,काश्मीर में ३७० और ३५-ए धारा हटाने की तर्ज़ पर राष्ट्रभाषा और जनसँख्या नियंत्रण के अलावा जो भी देशहित में नियम कानून हों,समय-समय पर रज़ामंदी से या फिर एकाधिकारवाद से कार्यवाही करे,तभी हम विकसित हो पाएंगे अन्यथा हम दिन-रात राग अलापते रहेंगें।
देश के विकास में भाषा,शिक्षा,स्वास्थ्य,बिजली, सड़क,पानी,रोज़गार,किसान का बचाव,आबादी,हत्याएं-आत्महत्याएं,बलात्कार,बिखराववाद का सीमित होना और राजनीति में नैतिकता-शुचिता का होना जरुरी है। इसके अलावा नागरिक अपने कर्तव्य और अधिकार पर विचार करें और उनका पालन करें,तभी देश में हिंदी भाषा की प्रगति संभव होगी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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