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एक विश्लेषण-उपन्यासों में ग्रामीण जीवन

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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उपन्यास आधुनिक युग की उपज है,उपन्यास वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है। मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में “मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।”
न्यू इंग्लिश डिक्शनरी अनुसार-“वृहद आकार गद्द्याख्यान या वृतांत जिसके अंतर्गत वास्तविक जीवन के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले पात्रों और कार्यों को कथानक में चित्रित किया जाता है।”
कहानी का विस्तृत रूप उपन्यास माना जाता है। जीवन को निकटता से देख-पहचानकर प्रस्तुत किया गया सम्पूर्ण ब्यौरा उपन्यास के रूप में सामने आता है। कहानी जीवन की एक घटना और उपन्यास सम्पूर्ण जीवन का घटना क्रम है। आज भी अन्य परिभाषाओं से अधिक यही परिभाषा उचित लगती है।
#उपन्यास:सृजन के सोपान-
उपन्यास के छह तत्व का निर्धारण पश्चिमी विद्वानों ने किया है-कथावस्तु,पात्र या चरित्र चित्रण,कथोपकथन,देशकाल,शैली,उद्देश्य
उपन्यास की कथावस्तु में प्रमुख कथानक के साथ-साथ अन्य प्रासंगिक कथाएं भी चल सकती है,परन्तु दोनों में परस्पर सम्बद्धता होना आवश्यक है।कथानक का आधार वास्तविक जीवन ही होना चाहिए।
पात्रों के चित्रांकन में भी स्वाभाविक सजीवता एवं विकास का होना आवश्यक है। पात्रों में वर्णगत विशेषताओं के साथ व्यक्तिगत विशेषताएं भी होनी चाहिए। गोदान का ‘होरी’, ‘हीरा’ और ‘शोभा’ तीनों एक हो वर्ग के हैं,किंतु तीनों का अंतर पाठक को स्पष्ट नज़र आता है। कथोप कथन पात्र को जीवित करते हैं। इनमें स्वाभाविकता और पात्रानुकूलता उपन्यास की जान होते हैं।
देशकाल का चित्रण उपन्यास की प्रथम पृष्ठभूमि से स्पष्ट होता है। कोई भी कृति बिना उद्देश्य के नहीं लिखी जाती।
हर उपन्यासकार की एक विशिष्ट शैली होती है,जिसकी झलक उपन्यास का प्रथम पृष्ठ पढ़ते ही मिल जाती है,वही पाठक का स्थान निर्धारित करती है।
#उपन्यास के प्रकार-ऐतिहासिक,घटना प्रधान,चरित्र प्रधान,आँचलिक,सामाजिक।
कथोपकथन,देशकाल,शैली,उद्देश्य,रस आदि अन्य औपचारिक तत्वों का विकास प्रथम बार मुंशी प्रेमचंद की कृतियों में दिखाई दिया। उन्होंने सस्ते मनोरंजन को दरकिनार कर जीवन के यथार्थ को अपनी कथा का विषय बनाया। यही कारण है कि उनके प्रत्येक उपन्यास में किसी न किसी सामयिक समस्या का चित्रण मार्मिक रूप से हुआ है। जैसे-
रंगभूमि(१९२८) में शासक वर्ग के अत्याचारों का वर्णन,प्रेमाश्रय(१९२१)में किसानों की वेदना,कर्मभूमि(१९३२)में हरिजनों की दशा, निर्मला(१९२२) में दहेज और वृद्ध विवाह की पीड़ा,गोदान (१९३६) में पुनः किसान और मजदूर वर्ग के शोषण की कथा का चित्रण हुआ है।
मुंशी प्रेमचंद के आदर्शात्मक उपन्यासों के बाद यथार्थ का बोध करने वाले ‘निर्मला’ और ‘गोदान’ ने चरम स्तर पाया। हिंदी उपन्यासों में एक और धारा चुपके से बह निकली,जिसे आँचलिकता नाम दिया गया। मेरे मतानुसार ग्रामीण जीवन और आँचलिकता में ज्यादा फर्क नज़र नहीं आता। वैसे ग्राम और आँचलिक में फर्क लगता ही नहीं है। आँचलिकता नाम देकर लिखा गया-गांव की माटी की सौंधी-सुगन्ध,पनघट पर छह-छम कर पानी लेने जाती गांव की गौरियों की चुहलबाज़ी,गांव का मेहनती भोला-भाला व्यक्ति,गहरे गड्ढे में धँसी झुर्रियों से ढंकी मटमैली आँखें,बैलों के गले में बजते मधुर संगीत के सृजक घुंघरू। इन सबके मेल से जन्म लिया इस नई धारा ने,जो कारखानों के धुएँ से दूर यंत्रों और वाहनों के कर्कश शोर से परे,तकनीकी विकास से कोसों दूर,महानगरीय सभ्यता के छलावे से मुक्त इस नई धारा में प्रकृति की सुंदर मनोहारी छटा का उत्कृष्ट वर्णन होने लगा।
आँचलिक उपन्यासों में फणीश्वरनाथ रेणु का ‘मेला आँचल’,रांगेय-राघव का
‘बंजारा’ व जनजातियों का सहानुभूतिपूर्वक दृष्टिकोण प्रभावी है। अमृतलाल नागर ने भी आँचलिकता पर कलम चलाई है।
प्रेमचंद काल में सैकड़ों उपन्यासकारों का प्रादुर्भाव हुआ। मुंशीजी का अनुसरण करके सामाजिक विषय को लेकर उपन्यास लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद ने नारी जीवन की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए ‘कंकाल’ की रचना की। कौशिक जी ने ‘माँ’ और ‘भिखारी’ में भी नारी की सामाजिक स्थिति का वर्णन किया। अश्क जी ने ‘गिरती दीवारें’ से मध्यमवर्गीय परिवार की स्थिति का कच्चा चिट्ठा खोला है।
#प्रेमचंद-गोदान
इसमें मूलतः भारतीय ग्रामीण जीवन का विराट चलचित्र है। इसमें होरी की मृत्यु का प्रसंग उपन्यास का सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग है। होरी की कहानी के साथ-साथ युवा पीढ़ी की कहानी भी साथ चलती है। गोबर,धनिया,मालती,मीनाक्षी आदि नई पीढ़ियों के प्रतीक हैं। गोदान सामंती युग में संयुक्त परिवार दुखान्तिका है। इसमें परिवार का विघटन साफ-साफ दिखाई देता है। इसमें कृषकों के अलावा मजदूर वर्ग की हालत का भी चित्र खींचा है। पूंजीपति वर्ग और महाजनी सभ्यता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है। इसमें उद्देश्य महत्वपूर्ण तत्व है जिसके चलते उन्यास लोगों की पसन्द बन गया है।
#गबन-
पुराने सामंती समाज में मध्यम वर्ग की स्थिति का लेखा-जोखा इस उपन्यास में है। सामंती समाज में स्त्रियों की दशा के साथ-साथ ब्रिटिश नौकरशाही का भी उपन्यास में वर्णन हुआ है। इसमें मध्यम वर्ग की दुर्दशा को चित्रित किया गया है। इस वर्ग की अनैतिकता इस वर्ग के जीवन में परिवर्तन की संभावनाओं का पता लगाना था। मध्यम वर्ग की नारी दशा को भी रेखांकित किया गया है। उपन्यास में विधवा रतन मणिभूषण के आगे कितनी लाचार है। देवीदीन की पत्नी सब्जी बेचती है,वह किसी से डरती नहीं है,जलपा ने अपने स्वत्व को पहचाना और रमानाथ को सुधारकर राष्ट्र की मुख्यधारा में जोड़ा। ग्राम्य जीवन की परिस्थिति अनुसार नारी की मजबूरी और मर्यादा तथा सीमाओं के साथ-साथ मध्यम वर्ग की दशा को तौलकर रख दिया है।
मुंशी जी ने ग्रामीण जीवन पर ही अधिकांश कलम चलाई है। इनके लेखन में नारी,गरीब मध्यम वर्ग व अछूतों का भाव समाहित है।
‘सेवा सदन’ में-सामाजिक सुधार की यथार्थपरक्ता,’रंगभूमि’ में शोषण के विरुद्ध विद्रोह तथा ‘कर्मभूमि’ में अछूतों के उद्धार की ग्राम्य जीवन की कहानी है।
फणीश्वरनाथ रेणु(मैला आँचल)-रेणु ने जिस इलाके को आधार बनाया है,वह कटियार और पूर्णिया के बीच पूर्व की ओर फैला हुआ है। मैला आँचल पूर्णिया जिले के एक पिछड़े गांव मेरीगंज की जिंदगी का जीवंत चित्रण है। रेणु ने स्वयम ‘मैला आँचल को आँचलिक कृति मानते हुए लिखा है-मेरीगंज को उसी सम्पूर्ण दरिद्रता,अज्ञान,अंधविश्वास, रूढ़ियों नई पनपती हुई राजनीतिक चेतना के साथ प्रस्तुत करना मुख्य उद्देश्य है। इसमें एक प्रासंगिक कथा महंत और लक्ष्मी की है। रामदास उसका चेला है।सेवादास की मृत्यु के बाद लरसिंहदास आचार्य जी का संदेश लेकर महंत बनने आता है और लक्ष्मी पर बुरी नज़र डालता है। बाद में कालीचरण उसे मारकर भगाता है। रामदास महंत बनकर रामप्यारी को दासी बनाता है,लक्ष्मी कॆ बलदेव से प्रेम सम्बन्ध कायम होते हैं।
दूसरी कथा फुलिया,सहदेव, खलासी और मिसर की है। तीसरी कथा कालीचरण और मंगली देवी की है।
मंगली चरखा सेन्टर की मास्टरनी होती है,गांव में हैजा फैलता है। वो रात-रातभर घूम-घूमकर गांववासियों की सेवा करते हुए स्वयं बीमार पड़ जाती है। कालीचरण उसकी देखभाल करता है और वह उससे प्रेम करने लगती है। इस तरह समग्र रूप में हम देखें तो यह मेरीगंज नहीं,बल्कि समस्त भारत वर्ष की ग्रामीण दशा और दिशा का चित्रण करता-सा प्रतीत होता है,रेणु का उद्देश्य भी यही रहा होगा, जिसमें वे सफल रहे हैं।
#रांगेय-राघव-कब तक पुकारूँ
इसमें नटों के आर्थिक शोषण एवं सामाजिक नैतिक पतन को समक्ष रखा गया है। राजस्थान के पहाड़ी अंचल पर बसे गांव में राघवजी ने उनमें फैली अज्ञानता,अंधविश्वास, गरीबी,शोषण,रीति-रिवाज का उपन्यास में जीवंत वर्णन किया है। मूलतः आँचलिक उपन्यास में एक स्थान का वर्णन होता है,लेकिन इसकी कथा जयारम पेशा लोगों को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। इसमें सुखराम व्यापारी और कजरी इन तीनों के इर्द-गिर्द ही कहानी घूमती है। इसमें लेखक का लक्ष्य सुखराम,प्यारी,कजरी रुस्तम खाँ तथा अन्य व्यक्तियों को विशिष्टता देना था। इस कहानी में सामंती व्यवस्था को चित्रित किया गया है। इसका केन्द्रीय भाव प्रेम होकर कथा में अनेक स्थानों पर पवित्रता,भव्यता,दिव्यता, निष्कलुषता आदि शब्दों का बारम्बार उपयोग हुआ है।लेखक ने सुखराम नामक पात्र को सूत्रधार के रूप में प्रस्तुत किया है। नरेश और चंदा की कहानी चार पीढ़ी यों का दस्तावेज है।कथा के विस्तार में ठाकुर और रजवाड़ों की अनबुझ प्यास को प्रदर्शित करते हुए ठाकुर और नटों के बीच में प्रेम सम्बन्धों ने उपन्यास को सशक्तता और प्राणवान बना दिया है। जादू, टोनों,टोटकों का वातावरण वहां पर होता है, जिसमें भूत-प्रेतों से गरीब और निरीह प्राणी परेशान है। पुलिस दरोगा,जमींदार,रुस्तम खाँ व बांके जैसे गुंडे भी इनके जीवन में प्रेत से कम नहीं है।
उपन्यास में मार्मिक प्रसंग,प्रेम-चित्रण में लेखक सिद्धहस्त दिखाई देते हैं। ग्रामीण, आँचलिक उपन्यासों में हर कोई अपनी सिद्धहस्तता सिद्ध नहीं कर सकता किंतु मुंशी प्रेमचन्द जी,फणीश्वरनाथजी व रांगेय-राघव ने अपने तई उपन्यास लिखकर अमिट छाप छोड़ी है।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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