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ग्रीष्मावकाश का बदलता स्वरुप:कल और आज

सुश्री नमिता दुबे
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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एक समय था जब ग्रीष्म अवकाश में हम अपने नाना-नानी या किसी हिल स्टेशन या कहीं
और घूमने का कार्यक्रम बनाकर चले जाते थे,
ऐसा लगता था कि छुट्टियां कभी ख़त्म ही ना हो,किन्तु आज समय की रफ़्तार ने माता-पिता की आकांक्षाओं को भी पर लगा दिए हैं।प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तीन-चार वर्ष की उम्र
से ही समर क्लास,कोचिंग आदि भेज दिया
जाता है। माँ-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा
हमेशा आगे रहे,इसी प्रतिस्पर्धा में वे अपने
अंदर के माँ-बाप को खो देते हैं। कुछ पालकों से जब इस सम्बन्ध में बात की तो उनका भी यही कहना था कि-“हमें समय ही कहाँ मिलता है ?” इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी से निजात
पाने के लिए वे कुछ समय हिल स्टेशन,ट्रेकिंग या पिकनिक स्पॉट पर घूम आते हैं।आजकल तो रिश्तेदारों के घर मनमाफिक
सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण होटल में
रुकना पसंद करते हैं। अब वे छुट्टी के दिन गए,जिसमें नानी के घर मामा,भुआ के बच्चों
का जमघट होताथा,सब बच्चे एकसाथ खेलते-खाते और रात में सब एकसाथ कतार से नीचे
बिस्तर लगाकर सोने में जो आत्मीयता का अनुभव करते थे,वह तो अब कल्पना मात्र ही
रह गई है।हमने बच्चों को दिखावे की दुनिया में ला खड़ा किया है,जिसमें बच्चे स्वयं दिग्भ्रमित हो गए हैं।प्यार के अभाव में आज के बच्चे या तो स्वयं को बहुत अकेला समझ तनाव में आ जाते हैं,यागलत संगत में पड़कर गलत राह पर निकल जाते हैं। आज बहुत जरुरी है कि व्यक्तिगत
स्वतन्त्रता के साथ ही भावनात्मक साथ और
रिश्तों की अहमियत बताएं,क्योंकि,शिक्षा हमें सुविधाओं व ऐश्वर्य का पिटारा तो दे सकती है,किन्तु नानी-दादी के अनुभवों के पिटारे से मरहूम कर देती है। समाज और इस नई पौध के लिए जितना अन्य प्राकृतिक,धार्मिक स्थानों
पर जाना-समझना आवश्यक है,उतना ही
जरुरी है बच्चों का परिवार की जड़ों से जुड़ना,
तभी तो संतुलित शिक्षा और चरित्र निर्माण बच्चों और समाज के उत्थान में सहायक बनेंगे।

परिचय : सुश्री नमिता दुबे का जन्म ग्वालियर में ९ जून १९६६ को हुआ। आप एम.फिल.(भूगोल) तथा बी.एड. करने के बाद १९९० से वर्तमान तक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपका सपना सिविल सेवा में जाना था,इसलिए बेमन से शिक्षक पद ग्रहण किया,किन्तु इस क्षेत्र में आने पर साधनहीन विद्यार्थियों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन देकर जो ख़ुशी तथा मानसिक संतुष्टि मिली,उसने जीवन के मायने ही बदल दिए। सुश्री दुबे का निवास इंदौर में केसरबाग मार्ग पर है। आप कई वर्ष से निशक्त और बालिका शिक्षा पर कार्य कर रही हैं। वर्तमान में भी आप बस्ती की गरीब महिलाओं को शिक्षित करने एवं स्वच्छ और ससम्मान जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। २०१६ में आपको ज्ञान प्रेम एजुकेशन एन्ड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी द्वारा `नई शिक्षा नीति-एक पहल-कुशल एवं कौशल भारत की ओर` विषय पर दिए गए श्रेष्ठ सुझावों हेतु मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा और कौशल मंत्री दीपक जोशी द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षण हेतु रोटरी क्लब,नगर निगम एवं शासकीय अधिकारी-कर्मचारी संगठन द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।  लेखन की बात की जाए तो शौकिया लेखन तो काफी समय से कर रही थीं,पर कुछ समय से अखबारों-पत्रिकाओं में भी लेख-कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। आपको सितम्बर २०१७ में श्रेष्ठ लेखन हेतु दैनिक अखबार द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। आपकी नजर में लेखन का उदेश्य मन के भावों को सब तक पहुंचाकर सामाजिक चेतना लाना और हिंदी भाषा को फैलाना है।

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