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कबीर का गहरा प्रभाव था डॉ. सीताराम ‘दीन’ की रचनाधर्मिता पर

जयंती पर साहित्य सम्मेलन में संगोष्ठी,कवियों ने दी भावपूर्ण काव्यांजलि………..
पटना(बिहार)।

स्मृतिशेष कवि डॉ. सीताराम ‘दींन‘ पर फक्कड़ और अक्खड संतकवि सद्ग़ुरु कबीर का गहरा प्रभाव था। वे कबीर साहित्य के विद्वान मर्मज्ञ और बड़े अध्येता थे। यही कारण है कि उनके साहित्य में स्थान–स्थान पर कबीर का स्वर गुंजित होता दिखाई देता है।

यह बात बुधवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में ‘दीन‘ जी की जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डॉ. सुलभ ने कहा कि,दीन जी एक संघर्षशील हीं नहीं संघर्ष–जयी दिव्य–पुरुष थे। उन्होंने अपनी कठिन तपस्या और श्रम से अपने स्वाभिमान की सतत रक्षा करते हुए किसी का उपकार लिए बिना अपने स्वयं का तथा अपने अंतर में स्थित महान कवि का निर्माण किया था। वे किसी की अनुकम्पा पाने के स्थान पर पैदल यात्रा करना सम्माजनक मानते थे। जेब में पैसा नहीं था,तो किसी से मांगने के स्थान पर वे,‘छात्र–वृति‘ की परीक्षा देने के लिए,अपने घर से ८० किलोमीटर की लम्बी दूरी पैदल तय की। अपने पुरुषार्थ और प्रतिभा से ज्ञान अर्जित किया और आदरणीय प्राध्यापक और साहित्यकार बने।

समारोह का उदघाटन करते हुए पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और साहित्यसेवी डॉ. एस एन.पी. सिन्हा ने कहा कि,दीन जी हिन्दी भाषा और साहित्य के बड़े विद्वान थे। उनके विचार क्रांतिकारी थे,जो रूढ़ियों पर गहरा प्रहार करते हैं।

अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, दीन जी जितने बड़े कवि थे,उतने ही प्रेम–भाव से ओत–प्रोत थे।

दीन जी की सुपुत्री डॉ. मंगला रानी ने अपने पिता के महनीय व्यक्तित्व के साथ उनके साहित्यिक अवदानों पर भी विस्तार से चर्चा की। प्रो. उषा सिन्हा,अंबरीष कांत,श्रीकांत सत्यदर्शी,डॉ.बी.एन. विश्वकर्मा तथा राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी वंदना से किया। फिर तो कविता की ऐसी धारा फूटी कि,गए शाम तक कविगण और श्रोतागण उसमें डूबते-उतराते रहे। आह–आह और वाह–वाह के साथ तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ ने इन पंक्तियों को स्वर दिया कि, “बादल है,गहराएगा ही,सागर है लहराएगा ही/जिसने होंठों पे रख ली है,वो बाँसुरी बजाएगा ही/जिसे राम ने कंठ दिया है,माँ सरस्वती ने दी वाणी/उसको सुनना ही सुनना है,वो गायक है गाएगा हीं।” डॉ. शंकर प्रसाद ने अपने ख़याल का इज़हार इन पंक्तियों से किया कि,-“वो क्या बताएगा मंज़िल का रास्ता शंकर/ जो ख़ुद भटकता फिरे उसकी रहबरी क्या है।” तल्ख़ तेवर के कवि ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘ सहित कवि घनश्याम,डॉ.विजय प्रकाश ,कवयित्री पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ आदि ने भी रचनाएँ प्रस्तुत की।

वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर,सुनील कुमार दुबे,राज कुमार प्रेमी,सिद्धेश्वर,डॉ. सुधा सिन्हा,पूनम आनंद,डॉ.शहनाज़ फ़ातमी, डा शालिनी पांडेय और सच्चिदानंद सिन्हा आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से कवि–सम्मेलन को स्मरणीय बना दिया। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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