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कर्म नीति हो

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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कर्म नीति हो
देश-भक्ति न छोड़ें
धर्म प्रीति हो।

वीर धरती
करे भला सबका
पेट भरती।

घृणा छोड़ दो
रिश्ते-नाते देखना
स्नेह जोड़ लो।

लालच त्यागें
अपना मानवता-
अब तो जागें।

भूल वासना,
मोह-साधना जोड़-
करो प्रार्थना।

अंदर जीतें,
नहीं सीमा उलांघें
संबंध सींचें।

मिटा असुर
संकल्प से मंजिल
विजय सुर।

जलाएँ ईर्ष्या
नहीं सोचें बुराई
जगाएँ आशा।

ताकत राम
जली रावण लंका
विन्रम काम।

कुकर्म छोड़ो
उतार मुखौटा तू
धर्म से जुड़ो॥