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अवकाश में रहना चाहती हूँ

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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अब मैं देख सकती हूँ आकाश का रंग बदलना- खानाबदोश लड़कियों के घाघरे का रंग
कतार में उड़ती चिड़ियों का कतार में घर लौटना,
ऊँटों का सिर उठा कर चलना,
सुन राहुल-हवाई जहाज से तेरे पास जाते हुए
बहुत नजदीक से देखा आकाश को,बादलों को, मानो विशाल एक कटोरा! सिर पर उलट रखा है
पर तेरे दूध के कटोरे से छोटा,
ऊपर से अट्टालिकाएं देखी-
पर तेरे माचिस के डब्बों वाले खिलौने से बड़ी नहीं!
राहुल मुझे जमीन पर ही उतार दे-
मैं पगडंडियों पर बेतहाशा दौड़ना चाहती हूँ,
आम तोड़ना,इमली तोड़ना,और ठहाका लगा कर हँसना चाहती हूँ।
तूने बड़े होकर मुझे छुट्टी दे दी,
राहुल,अब मैं अवकाश में रहना चाहती हूँ॥

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