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कर दी मेरी सबने हिंदी

गुरुदीन वर्मा ‘आज़ाद’
बारां (राजस्थान)
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‘विश्व हिंदी दिवस’ विशेष….

(शेर)-
मुझको मतलब क्या महफ़िल से,जब बाग मेरा उजड़ गया।
हो गई बर्बाद मैं अपनों से,सुहाग मेरा यहाँ उजड़ गया॥

कर दी सबने हिन्दी मेरी,अब शेष यहाँ क्या मेरा रहा।
मुझको मतलब क्या शमां से,जब संसार मेरा यहाँ उजड़ गया॥

करूँ विश्वास मैं किस पर,कर दी मेरी सबने हिन्दी,
करूँ कैसे अब श्रृंगार,चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी।
करूँ विश्वास मैं किस पर…

बनती दुल्हन कभी मैं यहाँ,सजाकर फूलों से अपने को,
लगाती हाथों में मेहंदी,संगिनी किसी की बनने को।
मुरझा गया मेरा गजरा,लगाये कौन मेरे हल्दी,
करूं कैसे अब श्रृंगार,चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी॥
करूँ विश्वास मैं किस पर…

बजती घुंघरू की तरह मैं भी,बाँहें तब सारी खिल जाती,
जलती ज्योति की तरह मैं भी,दुनिया मेरी रोशन हो जाती।
लेकिन मैं हो गई एक शाम,अंग्रेजी जब बन के आई आँधी,
करूँ कैसे अब श्रृंगार,चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी॥
करूँ विश्वास मैं किस पर…

वतन अब नहीं रहा मेरा,नहीं कोई शान मेरी यहाँ अब,
अपने ही बेच रहे हैं मुझको,नहीं कोई इज्ज़त मेरी यहाँ अब।
मैं किसको कहूँ यहाँ अपना,बना दिया है मुझको रद्दी,
करूँ कैसे अब श्रृंगार,चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी॥
करूँ विश्वास मैं किस पर…

परिचय- गुरुदीन वर्मा का उपनाम जी आज़ाद है। सरकारी शिक्षक श्री वर्मा राजस्थान के सिरोही जिले में पिण्डवाड़ा स्थित विद्यालय में पदस्थ हैं। स्थाई पता जिला-बारां (राजस्थान) है। आपकी शिक्षा स्नातक(बीए)व प्रशिक्षण (एसटीसी) है।इनकी रूचि शिक्षण,लेखन,संगीत व भ्रमण में है। साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय जी आजाद अनेक साहित्य पटल पर ऑनलाइन काव्य पाठ कर चुके हैं तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्रकाशित पुस्तक ‘मेरी मुहब्बत’ साहित्य खाते में है तो कुछ पुस्तक प्रकाशन में हैं।

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