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कलयुग:समय नहीं, हमारी सोंच बदली

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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लोग अधिकतर यह कहते मिलते हैं कि, समय बहुत बदल गया, पर समय नहीं बदला। समय जैसा का तैसा है, दिन में २४ घंटे होते हैं, सूर्य पूर्व से निकलता है, मनुष्य हाथ से ही खाना मुँह तक ले जाता है और खाता है एवं स्त्रियाँ ही बच्चों को जन्मती है। समय नहीं बदला, हमारी सोच बदली है।
सब कुछ हमारे देश में, रोटी नहीं तो क्या ?
वादा लपेट लो, लंगोटी नहीं तो क्या ?
आज एक समाचार पढ़कर दिल दहल गया ‘माँ ने जुड़वाँ नवजात को गला घोंटकर मार डाला’। महिला गरीबी और आर्थिक तंगी से परेशान थी, खुद पुलिस को बुलाकर हत्या की बात कबूली। ऐसे ही ‘२८ दिन की बेटी की कातिल माँ को उम्र कैद’ पढ़ा। माँ ने बीमारी और आर्थिक तंगी के कारण गला घोंट दिया था। अंकिता काण्ड में अति विशिष्ट के लिए लड़कियों पर दबाव डाला जाता था जिस्म फरोशी के लिए आदि।
इसके मूल कारण अनेक हो सकते हैं, पर अंत सबका दुखद है। इसके कारण यदि हम कई पहलुओं से समझें तो अलग-अलग होंगे और हैं पर यह सिलसिला थमने वाला भी नहीं है। कारण
पहला गरीबी। प्रमुख कारणों में से यह अहम है। गरीबी के सम्बन्ध में हमारे धर्म ग्रंथों में यह भी बताया है कि, पूर्व जन्म में आपने कोई दान नहीं दिया था, इस कारण इस जीवन में गरीबी मिली। इसके साथ धन का असंतुलन। जैसे कोई इतना अमीर कि, उसके पास धन रखने को जगह नहीं और एक ऐसा, जिसके पास फूटी कोड़ी नहीं।
इसके लिए शासन बहुत योजनाएं चला रहा है, जो लोक कल्याणकारी हैं पर गरीब तथा मजदूरी करने वाले बुरी आदतों से ग्रसित हैं। जैसे शराब, नशा करना
, जुआ खेलना। अज्ञानता के कारण कुछ भी नहीं समझना और कोई समझाए तो भी न समझना। मजदूर अपनी मजदूरी से रूखी-सूखी रोटी खा कर जीवन-यापन कर सकता है, पर इन आदतों के कारण हमेशा गरीबी का सामना करता है, और इसीलिए गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है।
किसी ने कहा है-‘सब-कुछ लुटा के बैठी हैं एक लड़की अपने कोठे पर!’ तो ख्याल आता है कि, कितनी ताकत होती है एक रोटी में। यानि गरीबी के कारण कोई भी परेशान हो सकता है और हो रहा है।
दूसरा कारण बेरोजगारी है। इसके कारण आर्थिक तंगी होने पर मनुष्य कुछ भी करने को तैयार रहता है। जैसे-चोरी, डकैती, लूटजनी आदि कृत्य के साथ अशांत मन होने एवं घर का वातावरण स्वस्थ न होने से लड़ाई होना सामान्य बात होती है। कभी-कभी छोटी-सी बात बड़ी बन जाती है। मानसिक असंतुलन के कारण मनुष्य विवेकहीन हो जाता है।
ऐसे ही आज देश में भुखमरी बहुत अधिक है। सरकारी आँकड़ों में सिर्फ मन का बहलाना है, हकीकत में जिसके ऊपर बीत रही है, वह ही समझता है।
आज देश विकासशील बनने जा रहा है और प्रगति बहुत कर ली है, पर इस ‘पर’ में बहुत कुछ छुपा है। आज पैसा प्रधान होने के कारण भी कोई भी कुछ कर रहा है, उसको सब बचाते हैं। कारण कि, वह स्वयं वजनदार होता है, या वजनदार बनाने की ताकत रखता है। जैसे गरीबी सब-कुछ करा देती है, वैसे अमीरी भी सब-कुछ करा सकती है। अमीरों की स्थिति भी कोई सुखद नहीं है।
व्यापार में गला-काट प्रतिस्पर्धा होने से भी तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं और धन के पीछे भी हत्याएं हो रही हैं।
राजनीति और प्रशासन का स्तर इतना घटिया हो चुका है कि, पदोपलब्धि हेतु किसी को भी दलित करने-रौंदने को तैयार हैं। आज नेता मर्यादाहीन और प्रशासन हृदयहीन है।सामान्यजन की कोई सुनवाई नहीं है। घटना घटने के बाद यदि कोई कार्यवाही की जाती है तो वह भी किसी की कृपा पर।
वर्तमान काल में कोई भी सुरक्षित नहीं है और खास तौर पर महिला वर्ग। महिलाएं समानता के अवसर के कारण स्वच्छंद होने से अधिक पीड़ित हो रही हैं।
वैसे, शासक या नेता का प्रभाव जनता पर पड़ता है। नेताओं के क्रिया-कलाप ‘मुख में राम बगल में छुरी’ लिए होते हैं। उनमें घमंड, मायाचारिता होने से छल-कपट का भरपूर उपयोग करते हैं आज जो जितना अधिक अपराधी, दगाबाज़, झूठ बोलने वाला और ठगने वाला है, वह समझदार और सफल माना जाता है।
शासक दोगले होने से वे बगुला भगत बने बैठे हैं और उनसे न्याय की अपेक्षा करना बेमानी होगी, इसलिए पुराने ग्रंथों, वेद-पुराणों में सच लिखा है कि, ‘जब राजा अपनी प्रजा का दोहन-शोषण करने लगेगा, माँएं अपनी संतानों को अपने हाथों से मारने लगेगी, बेटा-बेटी अपने माँ-बाप के हत्यारे होने लगेंगे, बहिनें अपने घर में सुरक्षित नहीं रहेंगी, चोरी-चमारी-मक्कारी बढ़ने लगेगी और हर कदम पर अविश्वास का बोलबाला रहेगा, धन प्रधान सामाजिक व्यवस्था रहेगी और मनुजता ख़तम होने लगेगी, समझ लो हम कलयुग में रह रहे हैं। कलयुग यानी कलपुर्जों के युग आना। यानी कलपुर्जों में आत्मीयता नहीं होती, बेदर्द होते हैं और उनसे जितना अधिकतम उपयोग किया जा सके करो।
भुखमरी, आर्थिक तंगी, दौलत के पीछे नृशंस हत्याएं होने लगे तो समझ लो राजा बेदर्द हो चुका है और उससे उम्मीद करना बेकार है।
वैसे, संसार में कर्मों के अनुसार सुख-दुःख भोगना पड़ता है और जिसकी जैसी होना होगी, वैसी होकर रहेगी।

इस विषम दौर में हमारा कल्याण बहुत सीमा तक धर्म, सदाचार, सदाचरण से होना संभव है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।