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कवि सम्मेलन में गूंजे ‘भारत-गौरव’ के गीत

मुंबई (महाराष्ट्र)।

‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ द्वारा ‘इंडिया नहीं मैं भारत हूँ’ विषय पर ई-कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री साहित्यकार डॉ. रविंद्र शुक्ल ने संविधान से इंडिया नाम हटाने और हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे कार्य की जानकारी देते हुए देशवासियों का आह्वान किया कि सभी भारतवासी राष्ट्र-प्रेम के महायज्ञ में अपनी आहुति दें।
इस सम्मेलन में डॉ. शुक्ल ने अपनी कविता से देशवासियों का आह्वान किया- ‘फिर से खोल चाणक्य शिखा,दुष्टों का वंश विनाश करें,अपनी संकल्प-साधना से भारत में नव विश्वास भरें। तब भारत फिर से जागेगा,घनघोर कुहासा भागेगा।’
जाने-माने गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने सम्मेलन के अध्यक्ष पद से अपनी कविता ‘तीन रंग का ध्वज फहराता,भारत लेकिन है सतरंगा’ से समां बांधा। वरिष्ठ साहित्यकार एवं विदेश मंत्रालय की पत्रिका ‘गगनांचल’ के संपादक डॉ. आशीष कंधवे की कविता- ‘मैं सब कुछ सह लेता हूँ,बस कोई मुझसे यह न कहे कि ‘क्या फर्क पड़ता है’ में व्यक्त पीड़ा से उत्पन्न आक्रोश ने प्रभावित किया। गाजियाबाद की कवियित्री शैलजा सिंह ने व्यंग्य गीत-‘भारत बनाम इंडिया’ प्रस्तुत करते हुए गाया- ‘बदल गया सामाजिक परिवेश,इंडिया बन गया,भारत देश।’ इस गीत ने श्रोताओं को खूब लुभाया। ऑस्ट्रेलिया के इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन के विभागाध्यक्ष व कवि डॉ.सुभाष शर्मा ने कहा कि,’भारत नहीं भूमि का टुकड़ा,जो चाहो वह नाम रखो,नहीं इंडिया है,यह भारत,भारत ही बस नाम लिखो।‘ इंग्लैंड के कवि डॉ. कृष्ण कन्हैया ने भी अपनी कविता के रंग बिखेरे।
मुंबई से कवि आलोक अविरल ने अपने विद्रोही तेवर में कहा- ‘आवश्यक है आज स्वर बदलना, आवाज़ लगा कर प्रहर बदलना। देश के नाम से ‘इंडिया’ हटाते हैं, भारत के नाम का ध्वज फहराते हैं।’ दिल्ली की युवा कवयित्री कोमल वर्मा ने भी कविता प्रस्तुत की।
सम्मेलन का संचालन करते हुए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कवियों का काव्यमय परिचय दिया। अपनी ओजस्वी कविता में आपने कहा-‘भारत से भाग्य विधाता है, इंडिया न हमारी माता है। जब भी आता भारत का नाम,सीना सबका तन जाता है। ज्ञान-विज्ञान,साहित्य-कला की,भव्य एक इमारत हूँ, मुझको इंडिया मत कहना, मैं भारत हूँ।’
कार्यक्रम में अमेरिका से डॉ. मृदुल कीर्ति तथा कवि डॉ. अशोक सिंह,सूरत से इन्द्र चंद बैद,कोटा से शंकर आशकंदानी आदि अनेक भारत-प्रेमी उपस्थित थे।
प्रारंभ में फाउंडेशन’ के अध्यक्ष तथा सम्मेलन के संरक्षक श्री बोथरा ने अतिथियों व कवियों का स्वागत किया। आपने उद्देश्यों का संक्षिप्त परिचय दिया। धन्यवाद फाउंडेशन के महासचिव कृष्ण कुमार नरेड़ा ने प्रस्तुत किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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