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कांग्रेस की दिशाहीनता

ललित गर्ग

दिल्ली
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लोकसभा के चुनाव उग्र से उग्रतर होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। भाजपा की ओर रुख करते नेताओं ने कांग्रेस की नींद उड़ा कर रख दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आक्रामक, तीक्ष्ण एवं तीखे आरोप लगाने वाली कांग्रेस दल में लगातार हो रही टूट एवं दल छोड़ने के कांग्रेसी नेताओं के सिलसिले को रोक नहीं पा रही है। इस बड़े संकट से बाहर निकलने का रास्ता कांग्रेस को नहीं सूझ रहा है। कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में ऐसा प्रतीत होता है कि, शीर्ष नेतृत्व में राजनीतिक अपरिपक्वता, दिशाहीनता एवं निर्णय-क्षमता का अभाव है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि, कांग्रेस कई राज्यों में बेमन से चुनाव लड़ रही है।

आज के परिदृश्यों में कांग्रेस अनेक विरोधाभासों एवं विसंगतियों से भरी है। चुनाव प्रचार हो या उम्मीदवारों का चयन, राजनीतिक वायदे हों या चुनावी मुद्दे, हर तरफ कांग्रेस घिरी है। उसकी सारी नीतियों में, निर्णयों में, व्यवहार में, कथन में विरोधाभास स्पष्ट परिलक्षित है। यही कारण है कि, उसकी राजनीति में सत्य खोजने से भी नहीं मिलता। उसका व्यवहार दोगला हो गया है। दोहरे मापदण्ड अपनाने से उसकी हर नीति, हर निर्णय समाधान से ज्यादा समस्याएं पैदा कर रही हैं। यही कारण है कि, नेताओं के दल छोड़ने या चुनाव लड़ने से इन्कार करने का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। यह निर्णय क्षमता का अभाव ही है, या हार का डर कि, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने क्रमशः अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय लेने में बड़ी कोताही बरती है। राहुल गांधी ने अमेठी में स्मृति ईरानी का सामना करने में स्वयं को अक्षम पाया और प्रियंका एक बार फिर चुनाव लड़ने से दूर ठिठक गईं। राहुल गांधी का अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ना भी कांग्रेस की दिशाहीनता का सूचक है। यह हास्यास्पद है कि, चाटुकार कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव न लड़ने के फैसले को यह कहकर बड़ी राजनीति जीत बता रहे हैं कि, दल ने स्मृति इरानी का महत्व कम कर दिया। क्या सच यह नहीं कि, कांग्रेस ने स्मृति इरानी की जीत सुनिश्चित करने का काम किया है ?
राहुल गांधी का २ सीट से चुनाव लड़ना भी यह दर्शाता है कि, १ पर तो वे जीत हासिल कर ही लेंगे। देश में लोकतंत्र की जड़ें लगातार मजबूत हो रही हैं। ऐसे में नेताओं के १ से अधिक सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर विसंगतियाँ भी सामने आ रही हैं। विमर्श इस बात पर हो रहा है कि, जब १ व्यक्ति को १ मत का अधिकार है तो, प्रत्याशी को २ सीट पर चुनाव लड़ने की अनुमति क्यों होनी चाहिए ? नेता अपने राजनीतिक हितों के लिए एकसाथ २ सीट पर चुनाव लड़ते हैं। इसमें न सिर्फ करदाताओं का पैसा खर्च होता है, बल्कि उस क्षेत्र के मतदाता भी ठगा हुआ महसूस करते हैं। इस बात की पड़ताल जरूरी है कि, २ सीट से चुनाव लड़कर राहुल गांधी भारतीय लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं, या इस व्यवस्था से सिर्फ राजनीतिक हित साध रहे हैं ?
भले ही राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान बेहद आक्रामक दिख रहे हों, लेकिन अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पा रहे हैं। इसका एक कारण गठबंधन के नाम पर अपने पुराने मजबूत गढ़ों में भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ना है। यह कांग्रेस की लगातार कमजोर होती राजनीति ही है कि, वह जीत की संभावना वाली सीटों को भी महागठबंधन के अन्य दलों को दे रही है। ऐसे निर्णयों के चलते कांग्रेसजनों के लिए भी यह समझना कठिन है कि, दिल्ली में आम आदमी पार्टी से समझौता करने से दल को क्या हासिल होने वाला है ? इस बार गांधी परिवार दिल्ली में उस आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को मत देगा, जिसने उसे रसातल में पहुँचाया। इस तरह के मामले केवल यही नहीं बताते कि, कांग्रेस उपयुक्त प्रत्याशियों का चयन करने में नाकाम है, बल्कि यह भी इंगित करते हैं कि, उसके पास अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोई ठोस रणनीति नहीं है।
कांग्रेस की नीति एवं नीयत भी संदेह के घेरों में हैं। क्या कारण है कि, पड़ोसी देश पाकिस्तान के नेता अब दुआ कर रहे हैं कि कांग्रेस का ‘शहजादा’ भारत का प्रधानमंत्री बने। दुश्मन राष्ट्र के नेता अगर किसी व्यक्ति या नेता के प्रधानमंत्री बनने की कामना करते हैं तो, निश्चित ही उस देश का हित जुड़ा होता है।
कांग्रेस ने बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की है, उसी का परिणाम है कि, ५०० वर्षों तक पीढ़ियों के संघर्ष के बाद बने प्रभु श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह एवं मन्दिर से कांग्रेस ने दूरी बनाए रखी है। जनता ही नहीं, कांग्रेस के नेता भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृृत्व की इन विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को समझ रहे हैं और पलायन कर रहे हैं। मुगलों व अंग्रेजों की भाषा बोल रहे और हिंदू संस्कृति के विरुद्ध जहर उगल रहे राहुल गांधी को पिछले २ लोकसभा चुनाव की तरह इस लोकसभा चुनाव में जनता क्या जबाव देती, यह भविष्य के गर्भ में है।