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कारगिल युद्ध की विजय गाथा

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’
अल्मोड़ा(उत्तराखंड)

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कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष……….


‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देख लेंगे जोश कितना बाजू-ए-कातिल में है॥’
भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के सम्मान के रूप में तथा कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर रणबाँकुरों को श्रद्धांजलि देने के रूप में २६ जुलाई का दिन ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस हमें कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता तथा भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराने की गाथा का स्मरण कराता है। लगभग २ माह तक चले इस युद्ध का अंत कारगिल युद्ध विजय के रूप में २६ जुलाई १९९९ को हुआ। इसी की याद में अब हर वर्ष २६ जुलाई को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का,जो हँसते-हँसते इस मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें,जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।
कारगिल युद्ध ‘कारगिल संघर्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच १९९९ में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। यह युद्ध होने के मुख्य कारण थे-बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों-पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुसपैठ करना,पाकिस्तानियों द्वारा कई महत्वपूर्ण भारतीय चोटियों पर कब्जा करना,लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा करने की योजना बनाना और सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर करना।
यह सभी मुद्दे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा व अस्मिता के लिए खतरे के संकेत थे,जिनके लिए पाकिस्तानी सैनिकों व आतंकवादियों का मुकाबला करना अत्यंत आवश्यक था। दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध को विदेशी मीडिया ने सीमा संघर्ष प्रचारित किया था,किंतु यह किसी युद्ध से कम न था। भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद हमारी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों व आतंकवादियों को मार भगाया था। गीता के इस श्लोक-
‘हतो वा प्राप्यसे स्वर्गम्,जितो वा भोक्ष्यसे महीम्।’ को प्रेरणा मानकर भारत के शूरवीरों ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को पाँव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया था।
भारतीय वीर सैनिकों ने हिमालय से ऊँचे अपने अदम्य साहस और पराक्रम से उनका डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में हमारे लगभग ५२७ से अधिक वीर योद्धा शहीद हुए थे और १३०० से ज्यादा सैनिक घायल हो गए थे। इनमें से अधिकांश वीर जवान अपने जीवन के ३० वर्ष भी पूरे नहीं कर पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया,जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।
अमर शहीद अधिकारी जो इस देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हुए,उन्हें उनकी वीरता के लिए सम्मानित भी किया गया,उनमें कुछ अमर बलिदानी वीरों का वर्णन प्रमुख है-
#कैप्टन विक्रम बत्रा-हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर में जन्मे जम्मू कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा ने मोर्चे पर डटकर अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया और भीषण गोलाबारी में घायल होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी क्रं. ४८७५ पर हमला किया,मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्ध क्षेत्र से निकालने के प्रयास में कै. बत्रा ७ जुलाई १९९९ की सुबह शहीद हो गए।अमर शहीद कै. बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
#लेफ्टिनेंट मनोज पांडे-)१/११ गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडे की बहादुरी आज भी बटालिक सेक्टर की जुबा टॉप पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में काली माता की जय के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडे ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए थे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अंतिम सांस तक लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए इस वीर को मरणोपरांत सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
#कैप्टन अनुज नायर-१७ जाट रेजीमेंट के बहादुर कै. अनुज नायर अपने छह साथियों के साथ टाइगर हिल्स सेक्टर की महत्वपूर्ण चोटी वन पिंपल की लड़ाई में शहीद हो जाने पर भी अकेले मोर्चा संभालते रहे,जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय सेना इस महत्वपूर्ण चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। इस वीरता के लिए कै. अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।
#मेजर पद्मपाणि आचार्य-राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मापानी अचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते लड़ते शहीद हो गए थे। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। इस वीर को मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
#कैप्टन सौरभ कालिया-भारतीय वायु सेना भी इस युद्ध में अपनी वीरता दिखाने में पीछे नहीं रही। रोलिंग की दुर्गम पहाड़ियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय हवाई सेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य कई सैनिक शहीद हो गए थे। कै. कालिया को पाकिस्तानी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था। काफी यातनाओं को सहने के बाद भी कै. कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी।
इसी तरह हल्द्वानी के मेजर राजेश, स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता आदि के साथ-साथ भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के करीब ३०,००० अधिकारियों व जवानों ने
‘ऑपरेशन विजय’ में अपनी वीरता और पराक्रम का परिचय दिया,एवं भारत के सम्मान को ऊंचा बनाए रखा,जिनमें से ५२७ शहीद हुए और १३०० से अधिक घायल हुए।
इन वीर रणबाँकुरों ने अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था,जो उन्होंने निभाया भी,मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे में लिपटे हुए,जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था,वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था। मातृभूमि पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले ये भारतीय वीर और अमर बलिदानी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं,मगर उनकी याद हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बनी रहेगी। जय हिंद,जय भारत,जय भारतीय सेना।
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा॥”

परिचय-डॉ.धाराबल्लभ पांडेय का साहित्यिक उपनाम-आलोक है। १५ फरवरी १९५८ को जिला अल्मोड़ा के ग्राम करगीना में आप जन्में हैं। वर्तमान में मकड़ी(अल्मोड़ा, उत्तराखंड) आपका बसेरा है। हिंदी एवं संस्कृत सहित सामान्य ज्ञान पंजाबी और उर्दू भाषा का भी रखने वाले डॉ.पांडेय की शिक्षा- स्नातकोत्तर(हिंदी एवं संस्कृत) तथा पीएचडी (संस्कृत)है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन (सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि में आप विभिन्न राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्यों में सक्रियता से बराबर सहयोग करते हैं। लेखन विधा-गीत, लेख,निबंध,उपन्यास,कहानी एवं कविता है। प्रकाशन में आपके नाम-पावन राखी,ज्योति निबंधमाला,सुमधुर गीत मंजरी,बाल गीत माधुरी,विनसर चालीसा,अंत्याक्षरी दिग्दर्शन और अभिनव चिंतन सहित बांग्ला व शक संवत् का संयुक्त कैलेंडर है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख और निबंध सहित आपकी विविध रचनाएं प्रकाशित हैं,तो आकाशवाणी अल्मोड़ा से भी विभिन्न व्याख्यान एवं काव्य पाठ प्रसारित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न पुरस्कार व सम्मान,दक्षता पुरस्कार,राधाकृष्णन पुरस्कार,राज्य उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार और प्रतिभा सम्मान आपने हासिल किया है। ब्लॉग पर भी अपनी बात लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न सम्मान एवं प्रशस्ति-पत्र है। ‘आलोक’ की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा विकास एवं सामाजिक व्यवस्थाओं पर समीक्षात्मक अभिव्यक्ति करना है। पसंदीदा हिंदी लेखक-सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,कबीर दास आदि हैं। प्रेरणापुंज-माता-पिता,गुरुदेव एवं संपर्क में आए विभिन्न महापुरुष हैं। विशेषज्ञता-हिंदी लेखन, देशप्रेम के लयात्मक गीत है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास ही हमारे देश का गौरव है,जो हिंदी भाषा के विकास से ही संभव है।”

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