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काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता,
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता।
गुरूजी का डण्डा देख मन में सकपकाता,
छिप-छिपकर कक्षा में कुछ न कुछ खाता।
चोर लिखकर पीठ पर,खूब खिलखिलाता।
जब वह पूछता, ‘किसने लिखा ?’ तो मुस्कुराता।
बस्ते में बस्ता बाँध,एक-दूजे को लड़ाता,
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता॥
सिसकते हुए ‘सावन’,मैम के पास जाता,
एक में दो जोड़कर,साथी को पिटवाता।
पिटाकर जब रोता,तब उसको खूब चिढ़ाता,
कलम,दवात,पटरी भी चतुराई से चुराता।
मुरझाए हुए पुहुप-सा पकड़ाने पर मुरझाता,
सबके सामने झूमकर चिल्लाते हुए पढा़ता।
कक्षा-कप्तान बनकर कक्षा में रोब जमाता,
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता॥
गुरूजी प्रश्न पूछते तो टपा-टप बताता,
मन लगाकर पढ़ता,कम से कम बतियाता।
वही काम करता जो कहती प्यारी माता,
पापा जिधर कहते,उसी दिशा में जाता।
गन्ना के रस जैसा सरस रखता सबसे नाता,
गुरूजी कहते, ‘शिष्य बनेगा भारत भाग्य विधाता।’
जीवन के उपवन को सदा मधुवन-सा सजाता,
कठिन परिश्रम करता,श्रद्धा से सिर झुकाता।
रूठे हुए साथियों को प्यार से मनाता,
नन्हें-मुन्ने बच्चों बीच कविता सुनाता।
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता,
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता॥
परिचय : रजत एवं स्वर्ण पदक विजेता कवि,लेखक,गीतकार,सम्पादक एवं शिक्षक सुनील चौरसिया की जन्मतिथि ५ अगस्त १९९३ और जन्म स्थान-ग्राम अमवा बाजार(जिला-कुशी नगर,उप्र)है। वर्तमान में काशीवासी श्री चौरसिया का साहित्यिक उपनाम नाम `सावन` है। आपने कुशी नगर में हाईस्कूल तक की शिक्षा लेकर बी.ए.,एम.ए.(हिन्दी) सहित बीएड भी किया है। इसके अलावा डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन, एनसीसी,स्काउट गाइड,एनएसएस आदि भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन,लेखन,गायन एवं मंचीय काव्यपाठ है। आप सामाजिक क्षेत्र में नर सेवा-नारायण सेवा की दृष्टि से यथा सामर्थ्य सक्रिय रहते हैं। आपकी लेखन विधा में कविता,कहानी,लघुकथा,गीत, संस्मरण,डायरी और निबन्ध आदि शामिल है। उपलब्धियों में राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले मॉरीशस,इंग्लैंड, दुबई,ओमान और आस्ट्रेलिया आदि सोलह देशों के साहित्यकारों एवं सम्माननीय विदूषियों-विद्वानों के साथ काव्यपाठ एवं विचार-विमर्श शामिल है। एक मासिक पत्रिका के उप-सम्पादक भी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य ज्ञान की गंगा बहाते हुए मुरझाए हुए जीवन को कुसुम-सा खिलाना,सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार कर सकारात्मक सोच को पल्लवित-पुष्पित करना, स्वान्त:सुखाय एवं लोक कल्याण करना है। कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। प्रकाशन में श्री चौरसिया की पहली पुस्तक ‘स्वर्ग’ २०१० में प्रकाशित हुई थी।