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काश! मैं नेता होता…

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता
आगे-पीछे चमचे होते,
स्वागत में सब लोग दौड़ते
यहाँ पर भाषण, वहाँ पर उद्घाटन,
चर्चा में हर रोज मैं होता।

काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवा कहलाता
कहीं पर हिंदू, कहीं पर मुस्लिम,
कहीं पर ऊँच, कहीं पर नीच
का झगड़ा रोज लगाता
इस तरह जातिवाद फैलाकर,
एकता पर भाषण देता।

काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता
जी तो नहीं करता फिर भी,
बाल, बच्चों और मौज-मस्ती की खातिर
विदेशी न सही;देशी बैंक में ही कुछ बैंलेंस बनाता।

काश! अगर में नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता
चुनाव के समय जनता से,
किए वादों को नहीं निभाता
उनसे मैं विश्वासघात करता।

काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवा कहलाता
अपने स्वार्थ के लिए,
किसी का भी कत्ल करवाता
जाँच के नाम पर फिर,
अपने ही लोगों का
एक कमीशन बनवाता,
इस तरह जनता को उल्लू बनाता।

काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता
गरीबों की झोपड़ी उजड़वा कर,
वहाँ पर फाइव स्टार होटल बनवाता
बाहर भूख से बिलबिलाते बच्चे,
और चीखती-चिल्लाती जनता
भीतर में चीयर्स का आनंद लेता।

काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता
‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर,
मुख्य अतिथि के रूप में
मुझे बुलाया जाता
जोरदार भाषण इंग्लिश में देकर,
हिंदी को बढ़ावा देता
‘माफ करना मुझे हिंदी बोलने की आदत नहीं’,
कह कर मैं क्षमा मांग लेता।
काश! अगर मैं नेता होता,
जनता का सेवक कहलाता…॥