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लौट कर आने लगे बगुले

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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चार दिन की रोशनी है इन चुनावों के सफर में।
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में॥

रह गए पीछे कहीं जो साथ चलते थे हमेशा,
अब ठगे से हो गए जो गात गलते थे हमेशा।
पंख उनके कट चुके हैं चील-गिद्धों के नगर में,
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में…॥

मोतियों वाले सपन अब आ रहे हैं याद हमको,
कीट गंदे आब वाले दे रहे क्या स्वाद हमको।
सीपियों की कोख बंजर हो गयी है सिंधु घर में,
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में…॥

साथ बगुलों के निभाना भाग्य में ऐसा लिखा था,
चुग गया मोती हमारे हंस के जैसा दिखा था।
रोग पीड़ित मछलियों के खार चुभते अंतसर में,
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में…॥

जिंदगी की तल छटी पर सूखती कुछ काइयां हैं,
जाति मज़हब खोजती कुछ घूमती परछाइयाँ हैं।
गीत ‘हलधर’ लिख गए हैं भाव की बहती लहर में,
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में…॥

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