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किसी सूरज `बेटे` की ही हो सकती है ऐसी पूनम `माँ….

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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यह वास्तव में कलेजा चीर देने वाला मार्मिक प्रसंग है। इसे श्रद्धांजलि कहना,उसकी हृदय विदारकता को कम करना है। जिसने भी फैलता हुआ वह वीडियो देखा,सन्न रह गया,क्योंकि एक माँ ही अपने कलेजे के टुकड़े के लिए ऐसा कर सकती है। दुखों के पहाड़ को सात सुरों की सरगम में समेटने की कोशिश कर सकती है। इसलिए,क्योंकि दिवंगत बेटे की यही अंतिम इच्छा थी। यह एक कलाकार माँ की कलाकार बेटे को अश्रुपूरित ममतांजलि थी। जिसने इसे देखा,वह अपने आँसू नहीं रोक सका। दिल को दहला वाला यह घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का है। वहां के रंगकर्मी और लोक संगीतकार सूरज तिवारी का ३० वर्ष की उम्र में हृदयाघात से निधन हो गया। सूरज की माँ पूनम भी प्रसिद्ध लोक गायिका और पिता दीपक‍ तिवारी भी रंगकर्मी हैं। सूरज ‘रंगछत्तीसा’ नामक कला संस्था चलाते थे। उन्हें हृदय रोग होने के कारण पेस मेकर लगाया गया था। हाल में वो जिले के तिल्दा के पास एक गांव में कार्यक्रम देने गए थे। इसी दौरान उन्हें हृदयाघात आया। जवान बेटे सूरज का शव जब उनके घर लाया गया तो वहां कोहराम मच गया। कलाकार,परि‍चित और नाते-रिश्तेदार जुटने लगे,लेकिन सूरज की कलाकार माँ ने दु:खों के इस पहाड़ को बेटे की खातिर सुरों से थामने का संकल्प किया। सूरज की अंतिम यात्रा निकलने से पहले पूनम ने बेटे का पसंदीदा भजन ‘चोला माटी के हे राम..एखर का भरोसा’ (यह शरीर तो मिट्टी का है,इसका क्या भरोसा) गाना शुरू किया। साथ में कुछ सहकलाकारों ने भारी मन से ढोलक और हारमोनियम पर संगत की। बेटे की मृत देह के आगे शून्य में तकते हुए माँ पूनम ने जिस तरह कलेजे पर पत्थर रखकर इस मृत्यु गीत को गाया,उसे देखने और सुनने के लिए भी कलेजा चाहिए। उधर,पिता दीपक इस झूठी आशा के साथ बेटे के निष्प्राण चेहरे को स्पर्श कर करते हैं कि शायद कोई चमत्कार फिर उसे जिंदा कर दे। माँ की स्वरांजलि से बेटे सूरज के चेहरे पर एक असीम शांति का आभास होता है। इस मार्मिक क्षण के गवाह तमाम लोग एक हाथ से आँसू पोंछ रहे थे,तो दूसरे हाथ से मृतक को दुआएं दे रहे थे। बीच में था केवल मौन संवाद।
किसी भी परिवार में किसी की असमय मौत वज्रपात की तरह होती है। उसमें भी जवान बेटे या बेटी का जाना तो ऐसा दुखदायक होता है कि उसकी भरपाई लगभग असंभव होती है। परिजनों की आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है। जीवन निरर्थक लगने लगता है। काल के न्याय पर संदेह होने लगता है। फिर भी कुछ ऐसे प्रेरक उदाहरण हैं, जब परिजनों ने अपने आत्मीय को खोने और अपने सपनों के समय से पहले ही कुचले जाने के बावजूद भी ऐसे महाकठिन क्षणों में अपने- आपको न केवल संयत रखा,बल्कि श्रद्धांजलि की एक नई और प्रेरक इबारत‍ लिख दी। उदाहरण के लिए पिछले साल अरूणाचल के तवांग क्षेत्र में एक हादसे में सेना के मेजर प्रसाद महाडिक का निधन हो गया था। इस युवा अफसर के परिवार पर मानो दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा,लेकिन उनकी युवा पत्नी गौरी ने अपने पति को बिल्कुल अलग ढंग से श्रद्धांजलि देने की ठानी। उन्होंने कम्पनी सेक्रेटरी की नौकरी छोड़ सेना में अफसर बनने की परीक्षा उत्तीर्ण की और आज वह थल सेना में लेफ्टिनेंट हैं। सैनिक पति को इससे बेहतर श्रद्धांजलि और क्या होगी ? इसी तरह २३ वर्ष पहले जम्मू कश्मीर में आंतकी हमले में शहीद होने वाले कैप्टन देवाशीष शर्मा की माँ और सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती निर्मला शर्मा बेटे की याद में भोपाल में हर साल अपने हाथों से बनाई सिरेमिक कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाती हैं और उससे होने वाली आय सैनिकों के कल्याण के लिए बने झंडा दिवस कोष में दान कर देती हैं। ऐसे ही एक मामले में कश्मीर के कुलगाम जिले में आतंकियों से मुठभेड़ में कमांडो नायक दीपक नैनवाल शहीद हो गए थे। हरिद्वार में अंतिम दर्शन के समय दीपक की मासूम बेटी समृद्धि ने पिता को जब इन शब्दों में भावांजलि दी कि ‘मेरे पापा आसमान में स्टार बन गए हैं’,तो सितारों की आँखें भी भर आईं।
जान से प्यारे परिजनों को याद करने के कुछ और भी अभिनव और सार्थक तरीके लोगों ने खोजे हैं। मसलन महाराष्ट्र के हिंग्लजगढ़ में एक अभियंता बेटी नेहा चराटी ने सड़क हादसे में मृत अपनी माँ की याद में उस गति अवरोधक (स्पीड ब्रेकर) को रेडियम से पेंट कर डाला,जिससे उसकी माँ का दुपहिया वाहन टकराया था। मकसद यही कि आइंदा किसी के साथ ऐसा हादसा न हो। मप्र के शाजापुर में पिछले दिनो डोल ग्यारस के जुलूस में करतब दिखाते समय हृदयाघात से स्थानीय लवकुश अखाड़े के उस्ताद नारायण कुशवाह का निधन हो गया। उनके शागिर्दों ने अपने गुरू को अनोखे ढंग से श्रद्धांजलि दी। उन्होंने उस्ताद की शव यात्रा के आगे ढोल-ढमाकों के साथ गुरू के सिखाए करतब करते हुए उस्ताद की पार्थिव देह को विश्राम घाट तक पहुंचाया। ऐसे ही भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने अपनी माँ श्रीमती सावित्री तिवारी के महाप्रयाण पर उनकी स्मृति में ८ पृष्ठ का विशेष रूप से विश्व स्तरीय अखबार प्रकाशित कर अनोखी श्रद्धांजलि दी। यह अखबार केवल परिजनों के लिए था।
मशहूर उद्योगपति और काॅफी कैफे डे के मालिक वी.जी. सिद्धार्थ की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने सीसीडी में जाकर श्रद्‍धांजलि स्वरूप एक कप काॅफी पी। हालांकि,बहुतों ने इसे राजनीतिक कलाबाजी माना,लेकिन यह भी संवेदना व्यक्त करने का एक अलग और मौन तरीका था। त‍मिलनाडु की पूर्व मुख्‍यमंत्री जे. जयललिता के निधन पर उनके प्रशंसकों ने ६८ किलो की भव्य इडली बनाई। यह इडली अम्मा की शक्ल की थी,जिसमें उनके चेहरे पर एक गहरी शांति झलक रही थी।
अब बात फिर कलाकर्मी माँ पूनम तिवारी की। पूनम को उनकी कला के लिए दाउ मंदराजी अलंकरण दिया जा चुका है। पूनम के पति दीपक ने प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ कई नाटकों में काम किया है। वे शहीद नारायण सिंह पर बन रही फिल्म का निर्देशन भी कर रहे हैं। लिहाजा,इस कलाकार दंपति के बेटे सूरज ने कला का ककहरा घर से ही सीखा और उसे परवान चढ़ाया। जो गीत माँ पूनम ने शोकाकुल अवस्था में गाया,वह सूरज को अत्यंत प्रिय था। शायद इसलिए कि इस गीत में ही जीवन का सार है। यह शरीर नश्वर है। इसका क्या भरोसा ? कब साथ छोड़ दे,लेकिन जो साथ रहने वाला है, वह है उस माँ की असीम ममता,धैर्य और बेटे की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने गम को सुरों की चादर में छुपा देने की अतुलनीय ताकत। आखिर जवान बेटे के वियोग में वही माँ ऐसा आध्यात्मिक संदेश देने वाला मृत्यु गीत गा सकती है,जिसमें हर विपदा से दो-दो हाथ करने का साहस और जज्बा हो। ऐसी पूनम माँ किसी सूरज बेटे की ही हो सकती है। अंतिम आशीर्वाद के रूप में ऐसी दुर्लभ स्वरांजलि भी वही दे सकती है। क्या नहीं..?

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