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देश बचाना हमारा भी कर्तव्य

ममता बनर्जी मंजरी
दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल)
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सम सामयिक मुद्दा-प्रदूषण और पर्यावरण………
हेमंत ऋतु के आगमन के साथ ही त्योहारों का सैलाब आ पड़ाl धनतेरस,काली पूजा,दीपावली,गोवर्धन पूजा,चित्रगुप्त पूजा,भाईदूज और छठपूजा हो गई। धनतेरस के अवसर पर सोने-चाँदी के आभूषणों और बर्तनों की खरीद-बिक्री होती है। कालीपूजा में शक्ति रूपिणी माँ की पूजा होती है,तो दीपावली में लक्ष्मी-गणेश के पूजन के साथ दीपोत्सव। गोवर्धन पूजा में भगवान विष्णु का पूजन,उसके बाद चित्रगुप्त महाराज के पूजन के साथ कलम दवात पूजन,भाईदूज भाई-बहनों का त्योहार और छठपूजा में अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य का पूजन हुआ। ये सारे त्योहार प्रकृति से जुड़े होते हैं।हेमंत ऋतु की गुलाबी ठंड के बीच लोग अदम्य उत्साह और भक्ति-भाव के साथ पूजन-अर्चन करते हैं। उत्सव-सा माहौल होता है,लेकिन इन त्योहारों के दरम्यान दिल्ली के पर्यावरण में प्रदूषण के अचानक भयानक रूप से इज़ाफ़ा हो जाने की खबर सुनकर हृदय काँप उठा।
कारण साफ नज़र आता है। लगातार वनों की कटाई,यान-वाहनों द्वारा छोड़े गए धुएँ और उनकी तेज आवाज़,कल-कारखानों की चिमनियों से निकले धुएँ और आवाज़,हवाई जहाज और जेट विमानों के भीषण गर्जन,लाउड स्पीकरों का शोर,अणुशक्ति का प्रयोग और मनुष्य के अन्य भौतिक सुखों की होड़ से आज एक ओर पर्यावरण खतरे में है,तो दूसरी ओर पर्व-त्योहारों में पटाखे और आतिशबाजी वायु में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड और कार्बन-मोनो-ऑक्साइड सरीखी हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ाने में सहायक साबित हो रही है।
प्रदूषण की धुंध इतनी कि,सूर्य का दर्शन पाना मुश्किल हो पड़ा है।
सिर्फ दिल्ली की ही नहीं,बल्कि भारत का विस्तृत भू-भाग वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण और अणु प्रदूषण के शिकार है,जिसके कारण भारत की बड़ी आबादी अनेक गम्भीर रोगों के शिकार हो रहे हैं। हाँलाकि,बढ़ते हुए प्रदूषण के प्रति जन-साधारण एवं भारत सरकार दोनों ही सजग हो रहे हैं,लेकिन प्रदूषण को रोकने में अब तक सफलता हासिल नहीं हो पा रही है।
वृक्षारोपण के अंतर्गत प्रतिवर्ष लाखों पौधे रोपे जा रहे हैं,लेकिन इनकी उचित देखभाल तथा रख-रखाव की कमी से रोपे गए लाखों पौधों में से कुछ हजार ही वृक्ष पाते हैं। वनों की कटाई रुकने का नाम नहीं ले रही। इसी का परिणाम है कि धरती कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि का शिकार हो रही है। रेगिस्तानों का विस्तार हो रहा है। भू-स्खलन और भू-क्षरण जारी है। विविध जल स्रोत सूख रहे हैं।
ध्यान दिया जाए तो भारत के गाँवों से लेकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में स्वच्छ और निरापद पानी का अभाव है। गाँवों और शहरों की गंदी नालियों का पानी कुएँ,तालाब और नदियों आदि में गिरना,कारखानों से निकलने वाली अवशिष्ट,विषैले पदार्थों का नदियों में गिरना, तालाबों में मवेशियों को नहलाना आज भी जारी है। हाँ,स्वच्छता अभियान के अंतर्गत अधिकतर क्षेत्रों में खुले में शौच करना बन्द करने की बहुत बड़ी मुहिम चलाई गई है,और घर-घर शौचालय बनाने में सरकार सफल भी हुई है,लेकिन सोचने का विषय है कि शौचालय में पानी आए कहाँ से ? धरती का जल स्तर नीचे चले जाने से कई क्षेत्रों में पानी की समस्या एक बहुत बड़ी समस्या बन कर मुँहबाए खड़ी है। सरकार करे भी तो क्या करें ?
इन सारी समस्याओं का एक ही हल है-युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण करना। इसके लिए सरकारी,गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों के साथ-साथ जन-साधारण को भी आगे आने की जरूरत है। जिस तरह शैक्षणिक योग्यता या आरक्षण के आधार पर नवयुवकों और नवयुवतियों को सरकारी नौकरी दी जाती है,उसी तरह प्रति वर्ष अपने भू-भाग में अधिक से अधिक वृक्ष लगाने और उसकी उचित देखभाल करने वालों के लिए भी सरकारी नौकरी का प्रावधान होना चाहिए। सरकारी और गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों में कर्मरत लोगों की प्रोन्नति हेतु वृक्षारोपण की एक संख्या निर्धारित कर देनी चाहिए।
यह तो रही अपनी ओर से सरकार के समक्ष लगाई गई गुहार,लेकिन सरकार के भरोसे रहकर हम अपने और आने वाली पीढ़ियों का जीवन दाँव में नहीं लगा सकते। हमें चाहिए कि हम अपने दैनन्दिन जीवन में प्रदूषण फैलाने का काम न करें और वृक्षारोपण करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लें। ऐसा इसलिए ताकि धरती हरी-भरी रहे,और हम और हमारी भावी पीढ़ी स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें।
साथ ही प्लास्टिक के उपयोग के साथ पटाखे और आतिशबाजी सदा के लिए त्याग दें। सरकार को भी चाहिए कि,इन्हें प्रतिबंधित कर देश से प्रदूषण का धुंध कम करे।
आइए,हम आज और अभी से युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण के काम में लग जाएँ और देश को बचाना हमारा कर्त्तव्य समझकर कम-से-कम वृक्षारोपण और पेड़-पौधों की उचित देखभाल जैसे अनिवार्य काम अपने दैनन्दिन जीवन का अंश बना लें,ताकि हमारा देश प्रदूषण से बचा रहे। देश चलाना हो तो सरकार चलाए,लेकिन देश बचाना हम आम नागरिकों का कर्त्यव्य है। तो शुरू करें अपनी मुहिम,क्योंकि संकल्प लेने का समय अब बचा नहीं हैl

परिचय-ममता बनर्जी का साहित्यिक उपनाम `मंजरी` हैl आपकी जन्मतिथि २१ मार्च १९७० एवं जन्म स्थान-इचाक,हज़ारीबाग (झारखण्ड) हैl वर्तमान पता-गिरिडीह (झारखण्ड)और स्थाई निवास दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल) हैl राज्य झारखण्ड से नाता रखने वाली ममता जी ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की हैl आप सामाजिक गतिविधि में कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर नियमित साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,लेख सहित साहित्य के लगभग सभी विधाओं में लेखन हैl झारखण्ड के झरोखे से(२०११) किताब आ चुकी है तो रचनाओं का प्रकाशन अखबारों सहित अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में भी हो चुका हैl आपको साहित्य शिरोमणि, किशोरी देवी सम्मान,अपराजिता सम्मान सहित पूर्वोत्तर विशेष सम्मान और पार्श्व साहित्य सम्मान आदि मिल चुके हैंl विशेष उपलब्धि में झारखण्ड प्रदेश में एक साहित्य संस्था का अध्यक्ष होना और अन्य में भी पदाधिकारी होना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को आगे बढ़ाना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-झारखण्ड का परिवेश हैl आपकी विशेषज्ञता-छंदबद्ध कविता लेखन में हैl

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