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कुछ भी पता नहीं…

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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न जाने क्या होगा कल का, कुछ भी पता नहीं
आने वाले समय का, कुछ भी पता नहीं।

जीवन एक नौका है, जिसे पार लगाना है,
सुख-दु:ख के भंवर में भी, हमें घुल-मिल जाना है।

ये मौसम की हवाएं, यूँ ही चलती रहेंगी,
सुख-दुःख के संग, करवटें बदलती रहेंगी।

पल भर के इस जीवन में, कोई अपना है कि नहीं,
इतना ही बस कहना है, यह समझ पाना ही नहीं।

रिश्तों को अगर हम देखें, बस तन्हा पाया है,
थम-सा गया यह आलम, बस एक दिखावा है।

अपनों के संग में रहकर, खुशियाँ ही आनी है,
पर कुछ ही समय की खुशियाँ, बस एक रवानी है।

न जाने क्या होगा कल का, कुछ भी पता नहीं।
रिश्तों के भंवर में देखो, बस अलग हो जाना है॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”