हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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कुदरत के नियम को चुनौती दे, क्यों सृष्टि को हिलाने चले ?
पंच भूतों को ही सृष्टा कह, जड़-चेतन का भेद मिटाने चले ?
कहाँ धारण करेगा नर गर्भ को, नारी क्या गर्भाधान करेगी ?
नर-नारी समता की सोच फिर क्या, नया कोई विधान भरेगी ?
विज्ञान मय मद मादकता, मानव विवेक को भरमा रही है
जड़ भूतों के भौतिक मेल को, आधार सृष्टि का बता रही है।
ज्ञान-विज्ञान में संघर्ष घणा है, पर कुछ न कुछ तो अनूठा है
वरना मौत के महामिलन में, क्यों लगता जगत तो झूठा है ?
जन्म-मरण की बात तो लहदी, दिन-रात और षड ऋतुएं हैं,
विज्ञान को ही सब-कुछ बताना, अपने ही मुँह मियां मिट्ठू हैं।
नर को नर ही रहने दो, नारी सदा से सृष्टि की सृजनहारी है।
क्यों लगे हैं नर-नारी को झगड़ाने ? यह तो समस्या भारी है॥