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कोई रोक सके तो रोक ले

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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विजयादशमी विशेष…

मैं जा रहा रावण की शरण में,
कोई रोक सके तो रोक ले
रावण को तो राम ने मार दिया था,
फिर क्यों उसे तुम सालभर
जिन्दा रखते हो !
हर साल जब उसे जला देते हो,
फिर कहां से वो आ जाता है।

रावण से भी अत्याचारी आज भरे हैं देश में,
नैतिकता का पाठ पढ़ाते
सफेद पोश के वेश में
है हिम्मत तो उसे जलाओ,
जले हुए को क्या जलाना !
युगों पहले मर गया, जो फिर क्यों
उसे जिन्दा करते हो!

खुद को राम का वंशज कहते हो,
और रावण को जिंदा करते हो
खेल-तमाशा अब छोड़ो लगाना,
आज तुम अपने अंदर के रावण को मारना
रावण से भी ज्यादा दुष्कर्म आज यहाँ पर होता है।

रावण तो राम के हाथों मर गया,
पर आज का रावण न्याय से
बाइज्जत बरी हो जाता है
रावण तो अपनी बहन के साथ अन्याय बदला लेता है,
पर तुम लोग किसका बदला लेते हो !

निरापराध-निर्बोध बालाओं को अपनी
हवस का शिकार बनाते हो
चीखते-चिल्लाते रहते हैं,
मासूम के माँ-बाप, आप सबूत की दुहाई देते हो
फिर पैसे और रसूख के बल पर,
हँसते-मुस्कुराते जेल से बाहर आते हो।

अच्छा था वो विभीषण जो, रावण के मारने का उपाय बताया था,
आज के विभीषण तो अत्याचारियों को बचाने का बीड़ा उठाते हैं
भूल जाओ उस रावण को,
चलो हम वर्तमान रावण को जलाएँ
राम के आदर्शों पर चलकर हम,
एक नया हिंदुस्तान बना लें।
मैं जा रहा रावण की शरण में,
कोई रोक सके तो रोक ले॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।