रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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मुझे नीर की प्यास नहीं, मुझे अमृत की तलाश है,
स्वाति नक्षत्र की बूँद सम, सीप अंक की तलाश है।
तुम ढूँढो फूलों में खुशी, मुझे सौरभ की प्यास है,
मादक भ्रमर से कह दो, मुझे नेह बीन की तलाश है।
क्षणिक भले हो दर्शन, उर स्पन्दन की ही आश है,
कैसे जीवन उत्कृष्ट होगा, उस प्रश्न की तलाश है।
तुम चाहे भ्रमित करो मुझे, हरि नाम ही मुझे प्रिय है,
जीवन को दे सार्थकता, मुझे उसी मुक्ति की तलाश है।
कवि भाव लेकर ‘रत्ना’, तू कब तक यूँ ही भटकेगी !
तेरे अन्तरतम को तो सदा, अन्तर्यामी की तलाश है॥