रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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मन से सिरजते लहू लिखूँ,
या आँखों में छुपाए पानी
कागज की कश्ती लिखूँ,
या बेमानों की कहानी।
हँसता हुआ गुलाब लिखूँ,
या उपवन की दास्तान!
अपना अबोध मन लिखूँ,
या उनका कटाक्ष बान।
हँसता हुआ जहाँ लिखूँ,
या व्यंग्य में डूबे हलकान
कलियों का सौरभ लिखूँ,
या दुर्गंध भरा वह वातायन।
जो भी लिखूँ मुझे पता है,
होगा न समाज का रूपायन।
पैसों के भगवान के आगे,
लुट चुका है धर्म-ईमान॥