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मेरे संतप्त हृदय की प्रतीक्षा

तृषा द्विवेदी ‘मेघ’
उन्नाव(उत्तर प्रदेश)
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संतप्त धरा की तृषा है मेघ,
मेरे संतप्त हृदय की चिर प्रतीक्षा हो तुम।
यह आकुल अंतर,
जैसे वेदना का रत्नाकर
संचित सारे अनुभव
प्रिये!
तुम्हारे भव्यागमन के पश्चात,
तुम्हारे सम्मुख मैं रखूँगी
तुम आओ,
इस निर्जन जीवन आँगन में
बन सुमन खिल जाओ।
मन और प्राण को,
सुवासित कर जाओ॥

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