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क्यों कन्हैया… ?

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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जन्माष्टमी विशेष…..

त्रिलोकी नाथ तुम,सकल अधिष्ठाता,
चराचर जगत के बस तुम ही रचयिया।
जन्म से निर्वाण पर्यन्त कष्ट ही कष्ट,
अपने भाग्य में क्यों लिखे कन्हैया ?

             जन्म कारा में,यमुना की जलधारा में,
             आकंठ पिता को क्यों था डुबाया ?
             कागासुर कभी शकटासुर गोकुल में,
             पूतना जैसा हर संकट क्यों आया ?

महिमा मंडन या दु:ख संसार की परिणति,
उद्देश्य जनार्दन था तुमने क्या ठाना ?
या कुछ न था तुम्हारे भी हाथों में,
पर लोगों ने तो आपको ही प्रभु है माना।

          वे रास लीला फिर विरह की पीड़ा,
          राज पाया पर सुख कहां भोगा ?
         कंस,जरासंध फिर काल्यावन चढ़ाई,
         कदम-कदम का कौतुक,अब क्या होगा ?

महाभारत फिर निज कुल का खात्मा,
अंत समाधि में बहेलिए के हाथों हुआ निर्वाण
कुल की स्त्रियां जब भीलों ने सताई,
तब क्यों बचाने न आए तुम ओ भगवान ?

            क्यों न जीता अर्जुन तब भीलों से,
            महाभारत विजयी धनुर्धर सखा महान?
            अर्जुन वही था, वही गांडीव था,
            फिर क्यों न चले, तब वे धनुष-बाण ?

सवाल कई हैं जहन में आज भी,
होनी बड़ी है कि आप प्रभु,या फिर इंसान ?
विधि का लेखा ही सबसे बड़ा है क्या ?
या तुम सबसे बड़ा भी, है कोई और ही भगवान ?

         यह निश्चित है कि सृष्टि संचालक,
        नियंता रचयिता है कोई न कोई जरूर
        जो हम ही होते स्वयंभू स्वयं तो,
       क्यों होते फिर प्रकृति के हाथों यूँ मजबूर ?

याद करो प्रभु सहस्र विवाह अपने,
फिर भी प्रेम को तुमने क्यों न पाया ?
राधा चाह कर भी क्यों एक न हो सकी ?
यह सारा खेल तो हमारी समझ में न आया।

         रामावतार में आकाश-पाताल खंगाले,
         रावण से भिड़ कर भी सीता को पाया।
        यहां तो हजारों विवाह करा कर भी आपने,
       आखिर, राधा रानी को क्यों था सताया ?

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