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खुशियों की खूंटियाँ

अमृता सिंह
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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क्यों ढूंढ रही हूँ खूंटियाँ अपनी खुशियाँ टांगने को ?
क्यों ढूंढ रही हूँ कंधे सहानुभूतियाँ बटोरने को ?
क्यों पाल रखा हैं वहम मैं कमज़ोर हूँ ?
खुश रहो,के कालिख को तुम निखार लोगी।

खुश रहो,के इन भीगी आँखों में…
काजल को,तुम संवार लोगी,
खुश रहो,के ये ना हुआ होता…
तो तुम अपनी मददगार ना होती,
खुश रहो,के उसने तुम्हें झिड़का ना होता
तो आज तुम राहे-खुद मुख़्तार ना होती।

संघर्ष की इस मिट्टी में,
फलने ना देती-फूलने ना देती
अपनी मुस्कुराहट के इन फूलों को,
आशाओं की कोपल किरणों को…
नया आसमान ना देती।

क्यों साबित करना तुमको,के तुम,तुम हो ?
क्यों नहीं खुद में खुद को ढूंढ कर
बेवजह गुनगुना लेती,
फिर कहती हूँ तुमसे…
क्यों ढूंढ रही हो कंधे सहानुभूतियों के,
जानती हो ना…!
के कंधे और सहारे,
…सरक जाया करते हैं॥

परिचय–अमृता सिंह के अवतरण की तारीख २२ मार्च एवं जन्म स्थान-इंदौर (मध्यप्रदेश) है। शिक्षा-बी.कॉम. सहित अंग्रेजी में स्नात्तकोत्तर,बी.एड. किया है। इनकी रुचि-सामाजिक कार्य,पर्यटन और कार्यक्रम प्रबन्धन में है। वर्तमान में आपका निवास इंदौर में ही है। संप्रति से आप इंदौर में निजी विद्यालय में शिक्षक हैं।

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