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गली के कुत्ते…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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कुत्ता एक वफादार प्राणी होता है, यह इंसानों का अच्छा दोस्त होता है तथा इसे घर में पाला जाता है…यह बात हम सभी विद्यालय के समय निबंध में लिखते रहे हैं, पर जब वही कुत्ता आपके प्राणों के लिए संकट का कारण बन जाए तो बहुत बड़ी आफत हो जाती है। आजकल देखने को मिलता है कि इन कुत्तों में इंसानों के साथ रहते-रहते इंसान वाला गुण समाहित होता जा रहा है। और हाँ, आजकल सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे शहर में कुत्ते घरों में कम ओर रास्तों में ज्यादा पाले जाते हैं।
भारत के हर शहर में आपको लगभग हर गली में कुत्तों की फौज नज़र आएगी,जो राह चलते लोगों को काटने के लिए दौड़ाकर या उन्हें डराकर मज़े लिया करती है। मुनसिपाल्टी वाले भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं। जबसे माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश पारित हुआ कि कुत्तों को नहीं मार सकते हैं,चाहे वो आवारा ही क्यों न हों,तब से जैसे इन गलियों के कुत्तों का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है। वे बस अपनी गली के बाशिंदों को ही पहचानते और उन्हें कुछ नहीं बोलते (अगर उन्हें कुछ भी बोलेंगे तो मार पड़ने का डर रहता है।), पर बाकी पर झपटने से नहीं चूकते,और हमारे अस्पतालों में कुत्ते के काटने पर देने के लिए इंजेक्शन उपलब्ध नहीं रहता है। बाहर के मेडिकल स्टोर से खरीदने पर बहुत सारे पैसे लगते हैं,जो हमारी जेब को बहुत भारी पड़ता है।
शहर की गलियों में कुत्तों का झुण्ड होना यह दर्शाता है कि यहाँ के लोग काफी दयालु और मिलनसार हैं,और अपने शहर की संस्कृति के अनुरुप रास्ते में कुत्ता पालते हैं। वे लोग रोज़ अपने घर का बचा-खुचा खाना इन आवारा कुत्तों को डाल देते हैं। उसके बदले में उन्हें यह लगता है कि यह कुत्ते उनके घर के सामने बैठ कर रखवाली करते रहेंगे।
एक दिन मैं अपने घर की बालकनी में खड़ा था,तब देखा कि एक व्यक्ति सड़क के एक कोने में सूखी रोटी रखकर चला गया। थोड़ी देर बाद कुछ कुत्ते वहां पर आए। उन सूखी रोटियों को सूंघा और फिर मुँह बिचकाते हुए चले गए। थोड़ी देर में एक गाय उन रोटियों को खा कर चली गई। दूसरे दिन देखता हूँ कि,उसी स्थान पर कुछ बच्चे रात की बची हुई माँस-बिरयानी डाल कर चले गए। पता नहीं,कुत्तों को इसकी जानकारी कैसी मिली। वे दौड़ते-दौड़ते आए और बड़े मज़े से बिरयानी की दावत उड़ाकर,चेहरे पर संतुष्ट भाव ले कर चले गए। मैं समझ गया कि हमारी गली के कुत्तों को सूखी रोटी पसंद नहीं है। खाने की हर वस्तु को वे काफी सूंघकर,जाँच-परखकर,सोच-समझकर और आपस में सलाह-मशविरा करके खाते हैं। मोहल्ले के लोग उनके लिए ढेर खाना रख देतें हैं, इसलिए खाने के मामले में हमारी गली के कुत्ते काफी ‘सिलेक्टिव’ हो गए हैं।
रात के वक्त मुश्किल होता है,शायद यही समय होता है जब दूसरे मोहल्ले के कुत्ते अपने पड़ोस में टहलने के लिए निकलते हैं। हमारी गली के कुत्तों की फौज बड़ी गर्मजोशी के साथ इन कुत्तों को स्वागत-सत्कार के साथ भगाने का कार्यक्रम के लिए एकसाथ सक्रिय होकर भयंकर शोर मचाती है,जिससे हमें रात को सोना मुश्किल हो जाता है। कई बार रात को घर से बाहर निकलकर पत्थर मारकर कुत्तों को भगाना पड़ता है।
कुत्तों का लगभग हर कार्यक्रम रात को हुआ करता है,और कभी-कभी रात के वक्त कुत्तों को राग अलापने की बात सूझती है। एक पहले ओं…ओं…ओं…करके शुरू होता है तो फिर दूसरा शुरू होता है और उसके बाद सारे के सारे उनके साथ देते हैं। हमें भले ही लगे कि कुत्ते रात के वक्त रो रहें हैं,पर बात ऐसी नहीं है। मैंने जब उनसे पूछा तो अपना नाम गोपनीय रखते हुए गली के आवारा, मुस्टंडे,कुत्तों के नेता ने मुझे बताया कि इन्सान गलत सोचते हैं कि रात के वक्त कुत्ते एकसाथ मिलकर रो रहें हैं। वास्तव में कुत्ते रोते नहीं है,वे अपनी भाषा में संगीत का राग आलाप कर रहे होते हैं।
गली के ये कुत्ते भिखारियों या माँगने वाले को कुछ नहीं बोलते हैं,लगता है कि इन्हें अपने बिरादारी का समझते हैं। जब अति हो जाती है तब लोग मुनसिपाल्टी में शिकायत करते हैं तब मुनसिपाल्टी वाले कुत्ता पकड़ने की गाड़ी लेकर मोहल्ले में पहुँचते हैं,ताकि उन्हें पकड़कर उनका परिवार नियोजन ऑपरेशन कर कहीं दूर छोड़ दें,पर यह हर समय संभव नहीं हो पता,क्योंकि इन कुत्तों का नेटवर्क बड़ा तगड़ा है। इन्हें पहले ही पता चल जाता है। मुनसिपाल्टी की गाड़ी मोहल्ले में घुसने के पहले ये सारे कुत्ते पता नहीं कहाँ छिप जाते हैं,एक भी कुत्ता कहीं पर भी नज़र नहीं आता। मुनसिपाल्टी वाले के साथ हम भी अपने मोहल्ले की एक-एक गली और एक-एक कोना छान मारते हैं। और नतीजन मुनसिपाल्टी वाले हम पर उन्हें नाहक परेशान करने का इल्जाम लगाकर खाली हाथ वापस लौट जातें हैं।
मैं आप लोगों को यह कहानी इसलिए बता रहा हूँ,क्योंकि मैं गलियों के कुत्तों से बहुत परेशान रहा हूँ और अपने अनुभव साझा कर रहा हूँ।
जिस मोहल्ले में ट्यूशन पढ़ाने जाता था,वहां के कुत्ते मुझ पर हमला कर देते थे। रोज़-रोज़ मैं जोर से साइकिल चलाते हुए अपने दोनों पैरों को उन कुत्तों से बचाते हुए भाग जाता था,और जोर-जोर से एक से बढ़कर एक गाली उन कुत्तों को देते हुए जाता था। उस गली के कुत्ते मेरे से दुश्मनी रखने लगे थे।
कुत्तों को मेरा टाइम-टेबल पता चल गया था कि यह बंदा शाम को ठीक ६ बजे ट्यूशन पढ़ाने आएगा और ठीक ७ बजे तक वापस जाएगा। उस गली के कुत्ते मेरा इंतजार करते थे,उन्हें देखकर मुझे महसूस होता था कि उन्हें बेहद अफ़सोस था कि बहुत कोशिश करने के बाद भी उन्हें मुझे काटने या डराने में कामयाबी नहीं मिली थी।
रोज-रोज कुत्तों के आक्रमण से अपने-आपको बचाते हुए मैं परेशान हो गया था। सोचा कि ट्यूशन पढ़ाने के लिए मना कर दूँ,पर इस घर के बच्चे को पढ़ाने के लिए मुझे काफी तगड़ा मेहनताना मिल जाता था, इसलिए चाहते हुए भी नहीं छोड़ पा रहा था। तब मैंने वहां के कुत्तों पर चोरों का तरीका
अपनाया।
मैंने चोरों से एक तरीका सीखा था कि पहले जाकर कुछ दिन तक कुत्तों को रोटी खिलाते रहो,जिससे कि वे आपको पहचान जाएंगे ओर भूँकने की जगह स्वागत करेंगे। देखने वाले लोग समझेंगे कि मोहल्ले का ही आदमी है। इस तरकीब का अनुपालन करते हुए मैंने भी रोज-रोज उन कुत्तों के आगे रोटी डालना शुरू कर दी। अब कुत्ते मुझ पर पहले जैसे नहीं झपटते थे,लगता है कि मेरे साथ उनकी जान-पहचान हो गई थी। वे रोज मेरे लिए इंतजार करते ओर रोटी खाकर चुप-चाप चले जाते थे। इस तरह से मैंने कुत्तों को ४ से ५ दिनो तक रोटी खिलाई। मुझे लगा कि ये कुत्ते मुझे अब पहचान गए हैं,अब आगे कुछ नहीं बोलेंगे,पर यह मेरी ग़लतफ़हमी थी।
जब छठवें दिन मै ट्यूशन पढ़ाने गया तो रोटी नहीं ले गया था। वे कुत्ते मुझे घर के भीतर जाते वक्त तो कुछ नहीं बोले,पर जब पढ़ाकर बाहर निकला तो सारे कुत्तों ने मुझे घेर लिया और पास आकर गुर्राने लगे। मानो कह रहे हों कि आज की हमारी खुराक कहाँ गई ? मैं उन्हें पुचकारते हुए वहां से किसी प्रकार निकल गया,पर उनके हाव-भाव से लगा कि अगले दिन उनके लिए रोटी नहीं लाया तो मेरी खैर नहीं…।
लगता है कि मनुष्य का गुण उनमें आ गया था जिस प्रकार मनुष्य को जब तक कोई खिलाते रहता है,तब तक कुछ नहीं बोलते हैं पर जब खिलाना बंद कर देते हैं,तब मनुष्य अपना नाख़ून और दांत दिखाना शुरू कर देता है।
अगले दिन घर से निकलते वक्त रसोई में देखा तो केवल एक ही रोटी पड़ी हुई मिली। मैं उसी को ही लेकर चला गया ट्यूशन पढ़ाने के लिए। मैं मुहल्ले में घुसा ही था कि सारे कुत्ते एकसाथ मेरे उपर लपके। मैं डर गया और जल्दी से वह १ रोटी जो मेरे जेब में पड़ा था उसे निकालकर उनके उपर उछाल दी। देखकर अवाक् रह गया कि कुत्ते बिल्कुल इंसानों की तरह मात्र १ रोटी के लिए एक- दूसरे से छीना-झपटी करने लगे और आपस में लड़ने लगे। इस बीच मैं चुपचाप वहां से खिसक लिया और दूबारा उस मोहल्ले में ट्यूशन पढ़ाने नहीं गया…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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