हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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तप-तप कर जीवन में,
इस तपन को तू सह रहा है
तुझे मालूम भी नहीं,
कितना संघर्ष कर रहा है
समंदर की गहराइयों में तू जी रहा है।
हर एक रास्ता संघर्ष का है, साधना करके सहजता से चल
एक पल का भी पता नहीं, भविष्य की चिंता छोड़
तू अपने बल पर आगे चल।
तू मूर्तिकार है,
ज़िन्दगी मूरत में सीरत ढूंढ रहा है
पत्थर को तराशना इतना, आसान नहीं होता
कठोर साधना व एकाग्रता पर ध्यान देना पड़ता है,
नकारात्मकता का साथ छोड़ अपने पर विश्वास करना पड़ता है,
क्योंकि समन्दर की गहराईयों में तू जी रहा है।
लाख ठोकरें खाई हैं,
मुश्किलों पर मुश्किलें आई हैं
पर मुसीबतों की यह बस अंगड़ाई है,
कोई साथ नहीं देता तकलीफों में हमें,
अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति मजबूत मनोबल आत्मविश्वास ही राह दिखाता है।
दुःख में-सुख में,
खुशियों के हर एक पल में बस इन्हीं का सहारा है।
क्योंकि, समन्दर की गहराईयों में तू जी रहा है॥