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ग़ज़ल का हिंदी स्वरूप विराट जी ने ही पैदा किया

व्याख्यान-रचना पाठ…

इंदौर (मप्र)।

विराट जी की कविता में नवोन्मेष सदैव मौजूद रहा। विराट जी का नाता छंदबद्ध रचनाओं से रहा है। ग़ज़ल का हिंदी स्वरूप उन्होंने ही पैदा किया था।
उन्होंने हिंदी को शब्द संस्कार दिए। वे अक्सर कहा करते थे कि यदि आँसू को तुम पानी कहते हो, तो गंगाजल अपमानित होता है।
मुख्य वक्ता के तौर पर ‘वीणा’ के सम्पादक राकेश शर्मा ने यह बात कही। शुक्रवार की शाम इंदौर शहर में यह आयोजन था वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रसेन विराट की स्मृति में व्याख्यान व रचना पाठ का, जो साहित्य अकादमी मप्र (संस्कृति विभाग) के सहयोग से हुआ। श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में इस आयोजन की अनुगूंज उपस्थित लोगों के मन में अमिट बनी रही। ‘बर्फ चुप्पी की पिघलनी चाहिए, कायदे से बात करनी चाहिए…।’, वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रसेन विराट की इसी पंक्ति से कार्यक्रम ‘गीत से अनुबंध’ चन्द्रसेन विराट की स्मृति में व्याख्यान एवं रचनापाठ की शुरुआत की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशन सोमानी ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार प्रभु त्रिवेदी मौजूद रहे। आपने भी श्री विराट के साथ अपने अनुभव सुनाए। साहित्य अकादमी मप्र के निदेशक डॉ. विकास दवे की मौजूदगी में यह गरिमामय आयोजन रात तक चला। आपने अतिथियों का स्वागत किया।
वरिष्ठ वक्ता श्री सोमानी ने कहा कि, शब्द की उपस्थिति से प्रभाव पैदा होता है। इस बात को विराट जी ने सिद्ध किया। वस्तुतः उन्होंने भाषा की साधना करते हुए शब्दों को सिद्ध किया था। संचालन स्थानीय संयोजक गिरेन्द्र सिंह भदौरिया ने किया।

स्मृति प्रसंग गीति धारा को प्रणाम करने का उपक्रम-डॉ. दवे
आयोजन में निदेशक डॉ. दवे ने कहा कि, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश ने अपने-आपको देशज रूप में ढाल लिया है। यही कारण है कि हमारे स्मृति प्रसंगों की सूची में मध्यप्रदेश के अनेक वरिष्ठ रचनाकारों को सम्मिलित किया गया है। महाकवि प्रदीप, वीरेंद्र मिश्र, पंडित रामनारायण उपाध्याय, भावसार बा, अटल बिहारी वाजपेयी, दिनकर सोनवलकर और चंद्रसेन विराट ऐसे ही नाम हैं। विराट जी का स्मृति प्रसंग हिंदी साहित्य की गीति धारा को प्रणाम करने का उपक्रम है। विराट जी उस धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो परंपराओं से जुड़ी रहकर अपनी संस्कृति का सम्मान करना जानती थी। साहित्य जगत में उनकी ५० से अधिक पुस्तकों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियाँ छंदबद्ध रचना कर्म करना सीखेंगी।

कवि सम्मेलन का भी खूब रंग जमा

इस आयोजन के दूसरे दौर में कवि सम्मेलन का भी खूब रंग जमा। इस दौरान कवयित्री और मंच संचालन में महारथी डॉ. वर्षा महेश केसरी (मुम्बई) ने शानदार गीत ‘अच्छी हैं बेटियाँ’ सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी तो हिमांशु भावसार ने ‘वो राम हैं आकर्ष सबके, राम से ही हर्ष है।’ पंक्ति सुनाकर सबको भावविभोर किया। ऐसे ही कवि अतुल दुबे ने ‘प्यार आँखों की भाषा है, समझो जरा, नाम लेकर न मुझको बुलाया करो..’ पर श्रोताओं से खूब तालियां लूटी। अन्य कवियों दामिनी ठाकुर, सुभाष गौरव आदि ने भी सुंदर और देशभक्ति वाली रचनाओं की प्रस्तुतियाँ दी।

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