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हाय! मँहगाई

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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हाय! हाय मँहगाई
उफ़! ये मंहगाई,
सच बता कहां से आई ?
है सबकी शामत आई।

नींबू कभी पसीना दिलाए,
प्याज नौ-नौ आँसू रुलाए
टमाटर भी है छक्के छुड़ाए
आम आदमी जीवन कैसे बिताए ?

सभी दुखी हैं भाई,
सच बता कहां से तू आई ?
आम आदमी की पीड़ित कथा को,
संतोष आनंद ने गीतों में
ढाला व्यथा को-
‘पहले जेब में रुपए लेकर जाते थे,
थैला भर सामान लाते थे।
अब थैले में रुपए लेकर जाते हैं,
और हाथ में सामान लाते हैं।’

मँहगाई की मार से जन-जीवन है त्रस्त,
बाल, वृद्ध,नर, नारी सबको बड़ा है कष्ट
शिक्षा हो गई इतनी मँहगी,
गरीब आदमी पढ़ाए कैसे ?
शादी लायक हो गई लड़की,
दहेज कहां से लाएं कैसे ?
दवाइयां हो गई इतनी महंगी,
वृद्ध इलाज कराएं कैसे ?
बेरोजगार हुए पढ़-लिखकर,
परिवार का भार उठाएं कैसे ?

नेता झूठे आश्वासन देते रहते हैं,
वोटों के लिए मँहगाई भुनाते रहते हैं
और जीतने पर वादों को भूलते रहते हैं,
जमाखोर भी दबा कर रखते हैं सामान,
वक्त आने पर दुगने भाव से बेचते हैं सामान
सरकार की कोई नकेल नहीं,
कोई नियम कोई कायदे नहीं
सख्त कानून कोई बनाता नहीं,
इस जाल में कोई पैर उलझाता नहीं
बस! आम आदमी पिस रहा है।
सुरसा की तरह मुँह फाड़ रही मँहगाई,
कोई करो उपाय, थम जाए ये मँहगाई॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

 

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