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गीत-ग़ज़ल से अधिक कठिन कार्य है सार्थक कविता लिखना

पटना (बिहार)।

नरेश सक्सेना, निराला , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, केदारनाथ सिंह जैसे कवियों की कविताओं को पढ़कर मुक्तछंद की कविता लिखने का प्रयास करना चाहिए। नए और पुराने कवियों के अनर्गल सपाट-बयानी विचार को कविता के नाम पर पढ़कर ढेर सारी कविताओं का सृजन करना कविता के भविष्य के लिए खतरनाक है। सच पूछिए तो गीत-ग़ज़ल से अधिक कठिन कार्य है एक सार्थक मुक्तछंद की कविता लिखना।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में ऑनलाइन अवसर साहित्य पाठशाला के ११वें अंक में संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में यह बात कही। इन्होंने पाठशाला में कहा कि, सविता सिंह अपनी कविता में लिखती है-‘नींद में ही छिपा है स्त्री होने का स्पर्श / जिसे महसूस करती है रात/ और जो छाई रहती है इस पृथ्वी पर /वह इसी स्पर्श की छाया है जिसके नीचे नींबू के फूल खिलते हैं / चंपा की कलियाँ जन्म लेती है / नींद में है कहीं सौंदर्य../जिससे जुड़ी है स्त्री / पनपाती मृत्यु।’ अब इतनी पहेलीनुमा कविता को कौन-सा आम पाठक समझने की क्षमता रखता है ? कविता ऐसी होनी चाहिए, जो किसी भी व्यक्ति के हृदय तक आसानी से पहुंच सके। शब्द ऐसे होने चाहिए, जिसके अर्थ सहज रूप से हम समझ सकें।
मुक्तछंद की कविताओं की बारीकी को समझाते हुए आपने कहा कि, आज के कवि नकल कर रहे हैं, अच्छी कविताएं पढ़ नहीं रहे हैं और लिख रहे हैं कुछ ज्यादा। यह कविता के लिए चिंताजनक स्थिति है।

सपना चंद्रा, पुष्प रंजन, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, इंदू उपाध्याय, योगराज प्रभाकर और माधुरी जैन आदि ने भी चर्चा में भाग लिया।