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गौरव का परचम,जग में फहराना होगा

राधा गोयल
नई दिल्ली
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चहुँओर से सीमा पर आतंकी गतिविधियाँ जारी हैं,
शत्रु से लोहा लेने की अपनी पूरी तैयारी है।
एक निवेदन है बहनों-माताओं से-कवियों से,
थोड़े दिन के लिए दूर हों,श्रृंगारी रतियों से।

आज जरूरत आन पड़ी है ‘राष्ट्र’ का नवनिर्माण करो,
मानव हो… मानव होने का फर्ज निभा, कुछ काम करो।
चीनी माल का बहिष्कार कर देश में ही निर्माण करो,
बने आत्मनिर्भर भारत,सब मिलकर ऐसे काम करो।

पूरा विश्व आज हमारी संस्कृति का लोहा मान गया,
आज हमारे जीवन मूल्यों का महत्व पहचान गया।
नई पीढ़ी को भी अब इनसे परिचित करने का युग है,
भूल चुके अपनी सभ्यता,उन्हें जगाने का युग है।

पाश्चात्य संस्कृति सभ्यता से जो नाता अपना जोड़ चुके,
अपने उच्च जीवन मूल्यों से बिल्कुल नाता तोड़ चुके।
कृषिप्रधान इस देश का कृषक,खेत से नाता तोड़ चुका,
गाँव छोड़कर शहर में आ,मजदूरी को मजबूर हुआ।

फसल ही नहीं होगी तो जनता भूखी मर जाएगी,
अनाज आयात करने की मजबूरी फिर हो जाएगी।
इसीलिए कहते हैं,अब सब मिलकर बिगुल बजाओ,
आत्मनिर्भर बन सके देश,मिलकर कोई युक्ति सुझाओ।

उठो किसानों! तुम्हें खेत की माँग सजानी होगी,
कवियों उठो! वीर रस की रस धार बहानी होगी।
सुप्त आत्मा को झिंझोड़ कर आज जगाना होगा,
अपनी सभ्यता-संस्कृति को फिर से अपनाना होगा।

उच्च हमारे जीवन मूल्य,उन्हें बचाना होगा,
अपने गौरव का परचम,जग में फहराना होगा।
अपनी सभ्यता…संस्कृति को सम्मान दिलाना होगा।
आजादी तो मिल गई है,अब उसे बचाना होगा॥

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