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चलो पतंग उड़ाएँ

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आ गई जनवरी,हवा सुरसुरी,चलो पतंग उड़ाएँ,
लंबी पूँछ बना,चल तना तना,आओ पेंच लड़ाएँ
ऐसे लहराए,मन को भाए,मेरी पतंग प्यारी,
छूने वह जाए,नैन गड़ाए,आसमान में तारा।

है रंग-बिरंगी,पवन की सँगी,लगती कितनी न्यारी,
उड़ी मस्त मलंग,मेरी पतंग,उससे हर एक हारा।
पंछी से उड़ते,तिरछे मुड़ते,नभ में पंख पसारे,
माझा मजबूती,हाथों छूटी,ढूंढती है सहारे।

सदा ढाती कहर,यह लहर-लहर,सबसे ऊंची जाए,
हम चकरी पकड़े गिरे-दौड़ते,दम-खम अपन फुलाएँ।
आओ सब साथी,मकर प्रभाती,मिलकर झूमे गाएँ,
तिल गुड़ की लड्डू खेलो,लट्टू ऐसे मकर मनाएँ॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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