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थोड़ी-सी बदनाम हूँ

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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थोड़ी-सी बदनाम हूँ,नहीं तो लाजवाब होती,
मैं खराब नहीं,हर दिल अजीज बेहिसाब होती।

लगातें जो हिसाब से गले मुझे,मैं यूँ ना सरेबाजार बदनाम होती,
जो न करते मुझे गलियों,बाजारों में रुसवा,
आज हर चौखट,खेलती-सी नौनिहाल होती।

आनन्द से सरोकार था मेरा तो,तुमने गमों के साथ बैठाया,
पीती न गर बेहयाई के घूंट मैं तेरे,यूँ मेरी आबरु तो न खराब होती।

भरते जो ले आनन्द रस मेरा,रगों में दौड़ती नौजवानों-सी,
यूँ न लुढ़कते वृद्ध बन तुम,और आज न मैं ख़राब होती।

रस थी मैं तो आनन्द का बेहिसाब सोम सा
तुम्हारी बेहिसाबी न होती तो न मैं शराब होती।

यूँ जो तेरी दरबदर आवारगी न होती अगर,
आज मैं हर चौखट,आँगन लाजवाब होती॥

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