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चलो लौट चलें संस्कृति की ओर

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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चलो अब लौट चलें हम,
गुलाम चिन्हों को छोड़
अंग्रेजी नीतियों को तोड़,
अपनी संस्कृति की ओर।

चलो अब लौट चलें हम,
हाय, बाय, टाटा को छोड़
दोनों हाथों को फिर जोड़,
अपनी सभ्यता की ओर।

चलो अब लौट चलें हम,
स्वार्थ मोह माया छोड़
सहयोग से नाता जोड़,
अपनी परम्परा की ओर।

देख चुका मैं आधुनिकता को,
सुख-सुविधा की प्रमाणिकता को
यहाँ प्रेम सहयोग का तनिक नाम नहीं,
देखो मानवता में इसका कोई दाम नहीं।

पहले रहते थे पिछड़े गाँवों में,
सुख-सुविधा के अभावों में
पर प्रेम शान्ति थी गाँवों में,
एकता भाईचारा था अभावों में।

अब नहीं जाना सुविधाओं की ओर,
हमें चाहिए अपनी संस्कृति का ठौर।
फिर अब ना रहेंगे हम अपनों से दूर,
चलो लौट चलें हम संस्कृति की ओर॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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