अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मजदूर हूँ
हूँ नींव का पत्थर
मजबूर हूँ।
चाहूँ आसरा
करूँ महल खड़े
हूँ बेसहारा।
मेरी बेबसी
सोता रात को भूखा
गायब हँसी।
कई योजना
दूरी सदा सुख से
हूँ तरसता।
कैसी सुविधा!
सड़क ही जीवन
खत्म जिंदगी।
दुःख से मौन
रचा ताजमहल
सब बेहाल।
मेरा पसीना
आराम पाते सब
मुश्किल जीना।
लालच नहीं
दो जून की रोटी ही
चाहूँ कीमत।
खुशी से दूर
कश्मकश रोटी की
सदा संघर्ष।
हम दुलारे
सब बेफिक्र हुए
कोरे हैं नारे॥