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छठ पूजन दें अर्घ्य हम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आदिदेव आदित्य अर्घ्य दूॅं, धन मन जन कल्याण जगत हो,
पूजन दें छठ अर्घ्य साॅंझ हम, हरें पाप जग मनुज त्राण हो।

राग द्वेष हर शोक मनुज जग, हर शोक परिताप विकल हो,
आतंकी दानव बने जगत्, करें नाश संताप सकल हो।

कन्द मूल ठकुआ प्रसून फल, भर डागर फल सूप भरे हो,
हे दिनकर स्वीकारो पूजन, तज निद्रा जग अरुणोदय हो।

महापर्व पूजन मैया छठ, तीन दिवस उपवास व्रती हो,
करें सुखी पति पूत स्वस्थ मनुज, भारती चहुँ प्रगति सजी हो।

धन वैभव सुख शान्ति जगत शुभ, दें दुनिया आलोक मुदित हो,
प्रकटित प्रातः अरुणिमा हर्ष, कर ग्रहण अर्घ्य शोक क्षयित हो।

काश्यपेय जीवन जगत शुभम, सृष्टि विधायक सूर्य तनय हो,
सहस्रशिखा भानु हिरण्यमय, पूजन अनुजा छठी सदय हो।

ग्रहाधीश रवि अश्व रथिक नभ, भ्रमणशील जग आलोकित हो,
अति पावन पूजन छठी पर्व, ज्योतिर्मय सरिता शुभ तट हो।

सिन्धु सरोवर सरित सरोवर, जगमग दीप कछार सकल हो,
पोंछ व्रती पथ आँचर पावन, दिनकर मन संचार नवल हो।

परम भक्ति छठ कठिन साधना, विधि-विधान उपवास व्रती हो,
निर्मल श्रद्धा शुचिता पूजा, छठी पूजा जल सरित तटी हो।

दीनानाथ पूजन साॅंझ प्रभु, फलदायी सभ काज मनुज हो।
अच्युत हर आतंक दनुज तम, समरस जन समाज सहज हो।

हरें व्याधि मानस लोक मनुज, भरें ज्योति नवप्रीत विमल हो,
प्रकृति मनोहर चारु सृष्टि शुभ , मानवता संगीत मृदुल हो।

कर ‘निकुंज’ विनत पुष्पित फलित, जपे गायत्री मंत्र महत् हो,
करें मनोरथ पूर्ण मनुज जग, हरें शत्रु षड्यंत्र विकट हो।

पूजन षष्ठी मातु लोक में, करें सुमंगल विश्व शुभम हो,
नारायण हर तिमिर पाप जग, बचे सृष्टि अस्तित्व शिवम हो।

नवप्रभात नवरंग भरें जग, रंजित जन दुनिया विहान हो,
नमन सतत अवसान निशा जग, रवि उषा जल अर्घ्य प्रदान हो।

पूजास्थल दे मनुज दण्डवत, अस्त भानु अरु भोर अटल हो।
खड़े जोड़ जल व्रती युगल नत, अर्घ्य सूर्य भर नोर विमल हो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥