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छोड़ दो या खोज लो

रणदीप याज्ञिक ‘रण’ 
उरई(उत्तरप्रदेश)
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या तो छोड़ दो,या फिर खोज लो,
अंधकार तिमिर,जीवन के पथ परl
मशाल बाती गूंथ लो,या फिर मशाल लौ को फूंक दो,
या तो उठ कर निंद्रा त्यागो,या फिर से चादर ओढ़ लो
अंधकार तिमिर,जीवन के पथ को,
या तो छोड़ दो,या फिर खोज लोll

या तो आज उठकर खड़े हो,या फिर से कल पर टाल दो,
या तो तीर लक्ष्य पर भेदो,या फिर तीर कमान से उतार लोl
अंधकार तिमिर,जीवन के पथ को,
या तो छोड़ दो,या फिर खोज लोll

या तो अवसर को भुना लो,या फिर पानी फेर दो,
या तो घर का मोह त्यागो,या फिर से घर में दुबक लोl
अंधकार तिमिर,जीवन के पथ को,
या तो छोड़ दो,या फिर खोज लोll

या पिंजरे को तोड़ लो,या फिर पिंजरे में ही जीवन बिता दो,
या तो कार्य की जिम्मेदारी लो,या फिर कोई बहाना ढूंढ लोl
अंधकार तिमिर,जीवन के पथ को,
या तो छोड़ दो,या फिर खोज लोll

परिचय–रणदीप कुमार याज्ञिक की जन्म तारीख १३ मई १९९५ है। साहित्यिक नाम `रण` से पहचाने जाने वाले श्री याज्ञिक वर्तमान में वाराणसी में हैं,जबकि स्थाई बसेरा उरई(जालौन)है। वर्तमान में एम.ए (द्वितीय वर्ष) के विद्यार्थी और कार्यक्षेत्र भी यही है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत अपने लेखन के माध्यम से विचारों का सम्प्रेषण करते हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता, कहानी और लेख है। प्रकाशन के तहत वर्तमान में कार्य(बुन्देखण्ड से संबंधित इतिहास पर)जारी हैl रण की लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ना,अंधविश्वास को दूर करना, नागरिक बोध की समझ विकसित कराने के साथ-साथ निष्पक्ष सोच की मानसिकता को पैदा कराने का प्रयास है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-माता-पिता,शिक्षकगण तथा मित्रगण हैं।भाषा ज्ञान-हिन्दी,बुन्देलखण्डी एवं अंग्रेजी का रखते हैं। रुचि-लेखन,खेल और पुस्तकें पढ़ने में है।

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